अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किसी भी हाल में रूस-यूक्रेन संघर्ष रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कई बार दावा भी कर चुके हैं कि वे यह युद्ध जल्दी ही समाप्त करा देंगे। इस सिलसिले में उन्होंने पहले यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बातचीत की, उन्हें चेतावनी भी दी और फिर यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य और वित्तीय मदद पर रोक लगा दी। यूक्रेन एक तरह से असहाय नजर आने लगा है। अब ट्रंप ने इस मुद्दे पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से फोन पर बातचीत की और पूरी तरह युद्ध रोकने का प्रस्ताव रखा। मगर रूस ने भी इसके लिए अपनी कुछ शर्तें रख दी हैं। उसका कहना है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को इसके लिए सैन्य और खुफिया सूचनाएं उपलब्ध कराना पूरी तरह बंद करना होगा।

हालांकि पुतिन इस बात के लिए राजी हो गए कि रूस तीस दिनों तक यूक्रेन के ऊर्जा ठिकानों पर हमला नहीं करेगा। अमेरिकी प्रशासन इसे ट्रंप की बड़ी उपलब्धि बता रहा है। जबकि माना जा रहा था कि यूक्रेनी राष्ट्रपति को जिस तरह ट्रंप ने फटकार लगाई और यूक्रेन पर शिकंजा कसा है, उससे रूस बहुत आसानी से ट्रंप के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगा। मगर ऐसा हो न सका।

नाटो की सदस्यता लेना चाहता है यूक्रेन

दोनों नेताओं के बीच हुई इस लंबी बातचीत को एक बड़ी उपलब्धि इस अर्थ में माना जा सकता है कि पिछले तीन वर्षों से पश्चिमी देशों से बिल्कुल अलग-थलग पड़े रहे और उसके पहले तनावपूर्ण रिश्तों के बाद रूस की उनसे सीधी बातचीत संभव हो सकी है। मगर पुतिन मंजे हुए राजनेता हैं और वे ऐसे मामलों में बिल्कुल हड़बड़ी नहीं दिखाते। वे उस तरह अमेरिका के किसी दबाव में भी नहीं हैं, जिस तरह यूक्रेनी राष्ट्रपति हैं। फिर, उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि अमेरिका कब तक अपने ताजा रुख पर कायम रह सकेगा। इसलिए वे जल्दबाजी में किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहते।

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यूक्रेन के साथ रूस का संघर्ष ही इस बात को लेकर है कि यूक्रेन नाटो की सदस्यता लेना चाहता है। नाटो पश्चिमी देशों का संगठन है और यूक्रेन अब भी उस पाले में शामिल रहने की जिद पर है। इसलिए जब ट्रंप ने अमेरिकी मदद बंद करने की घोषणा की, तो यूक्रेन ने अन्य पश्चिमी देशों से मदद पाने की कोशिश शुरू कर दी। वे अब भी यूक्रेन के साथ खड़े हैं। इसलिए रूस ने यूक्रेन की जड़ों पर प्रहार करने की शर्त रख दी है।

रूस के सामने अमेरिका का समर्पण करने जैसा होगा

हालांकि माना जा रहा है कि ट्रंप की पुतिन से बातचीत युद्ध विराम की दिशा में पहला कदम है और इसके बेहतर नतीजे निकलेंगे। मगर अमेरिका के लिए रूस की शर्तों को मानना आसान नहीं होगा। वह नाटो के दूसरे सदस्य देशों पर कैसे दबाव बना सकता है कि वे यूक्रेन को सैन्य और खुफियां जानकारियां उपलब्ध कराने पर पूरी तरह रोक लगा दें। यह एक तरह से रूस के सामने समर्पण करने जैसा होगा।

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यह ट्रंप भी शायद नहीं करना चाहेंगे। दरअसल, ट्रंप की नजर यूक्रेन के खनिज संपन्न इलाकों पर है और वे उन पर कब्जा करना चाहते हैं। रूस उन क्षेत्रों में अमेरिका की पैठ पर सहमति दे चुका है, पर इसके लिए युद्ध विराम जरूरी है। ट्रंप इसके लिए क्या रास्ता निकालते हैं, देखने की बात है। इस संघर्ष में काफी खून बह चुका, बहुत कुछ तबाह हो चुका है, मानवता के लिए भी इस युद्ध को रोका जाना जरूरी है।