अर्थव्यवस्था के मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की अच्छी साख बनी है। अब दुनिया के विकसित और महाशक्ति कहे जाने वाले देश भी भारत को आर्थिक रूप से लगातार मजबूत होते देश के तौर पर स्वीकार करने लगे हैं, तो इसका मतलब है कि यह आज वैश्विक पटल पर कई स्तरों पर यह अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। अर्थव्यवस्था से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई समस्याओं और अलग-अलग देशों के साथ कूटनीति के मोर्चे पर भारत ने अपनी एक स्वतंत्र और मजबूत पहचान बनाई है।

वैश्विक महाशक्ति बनने का हकदार है भारत

शायद यही वजह है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस बात की स्पष्ट वकालत की है कि भारत वैश्विक महाशक्तियों की सूची में शामिल होने का हकदार है, क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था किसी भी अन्य देश की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रही है। इसके अलावा, पुतिन ने यह भी कहा कि भारत की आबादी करीब डेढ़ अरब है, यहां एक प्राचीन संस्कृति रही है और यहां भविष्य में भी विकास की बहुत अच्छी संभावनाएं हैं।

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यों रूस और भारत के बीच बहुत पहले से अच्छे संबंध रहे हैं और इस नाते दोनों एक दूसरे के सम्मान का खयाल रखने की कोशिश करते रहे हैं। मगर पिछले कुछ दशक में भारत ने आर्थिक और वैश्विक साझेदारी के मोर्चे पर जिस तरह लगातार शक्ति अर्जित की है, उसमें उसे नजरअंदाज करना कठिन हो गया है। खासकर, वैश्विक दक्षिण के देशों को एकजुट करने में इसकी अहम भूमिका रही है। इसने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है।

ताकतवर सहयोगी के रूप में भारत को देखा जा रहा

पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भू-राजनीति की दृष्टि से जो नए समीकरण बने हैं, उसमें भारत को एक ताकतवर सहयोगी के तौर पर देखा जा रहा है और उसे उचित जगह देने की वकालत की जा रही है। मसलन, हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को भी स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल करने को लेकर अब अक्सर आवाज उठाई जाती है।

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कूटनीतिक स्तर पर भी कई जटिल समस्याओं का हल निकालने में इसने एक मजबूत पक्ष के रूप में काम किया है। इसलिए पुतिन का भारत को वैश्विक महाशक्तियों की सूची में शामिल करने का सुझाव अकारण नहीं है।