देश में केंद्रीय रिजर्व बैंक की ओर से रेपो दरों के संबंध में जो फैसला लिया जाता है, उसका असर मुख्यत: बाजार में ऋण चुकाने के लिए मासिक किस्तों पर किसी वस्तु की खरीदारी से लेकर जमीन-जायदाद के कारोबार पर भी पड़ता है। इसलिए जब भी रेपो दरों के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक होती है, तब इसे लेकर आम लोगों के बीच उत्सुकता रहती है। हालांकि ज्यादातर साधारण लोगों को अर्थव्यवस्था के जटिल नियम-कायदों से बहुत वास्ता नहीं होता और वे ऐसे फैसलों के अमल के बाद बनने वाली स्थितियों पर निर्भर रहते हैं कि उनकी जेब ढीली होगी या उन्हें राहत मिलेगी।

गौरतलब है कि बुधवार को मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद यह घोषणा की गई कि इस बार भी नीतिगत दरों में में कोई बदलाव नहीं होगा। यानी बीते अगस्त की तरह अक्तूबर में ब्याज दर को 5.5 फीसद पर ही यथावत रखा गया है। कहा जा सकता है कि त्योहारों के इस मौसम में अगर लोगों को अतिरिक्त राहत नहीं मिली है, तो कोई बड़ा झटका भी नहीं लगा है। हालांकि पिछले कुछ समय से भारत सहित दुनिया भर में आर्थिक मोर्चे पर जिस तरह की अनिश्चितता बनी हुई है, उसमें आम लोगों का आशंकित होना स्वाभाविक है।

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दरअसल, अमेरिका की ओर से शुल्क लगाए जाने की नीति पर कदम बढ़ाने के बाद भारत सरकार ने आंतरिक मोर्चे पर अर्थव्यवस्था को संभालने और आम लोगों को राहत देने के लिए जिस तरह माल एवं सेवा कर के ढांचे में बदलाव करने सहित कुछ अन्य कदम उठाए, उसमें रेपो दरों को लेकर भी लोगों के बीच यह उम्मीद बंधी थी कि इसमें भी कोई राहत का संदेश आएगा। मगर केंद्रीय बैंक की ओर से इसे यथावत रखने की घोषणा के बाद अब संभव है कि लोगों को अपने आर्थिक मामलों में थोड़ा संतुलन का ध्यान रखना होगा।

इससे पहले इस वर्ष रेपो दरों में तीन बार कटौती के साथ इसमें सौ आधार अंकों की कमी की जा चुकी है। जाहिर है, यह न केवल देश के भीतर आर्थिक उतार-चढ़ावों का सामना करने की कोशिश है, बल्कि फिलहाल दुनिया भर में आर्थिक मोर्चे पर जैसी चुनौतियां खड़ी हैं, उसमें स्थिरता बनाए रखने के उपायों से अर्थव्यवस्था को संभालने में मदद मिल सकती है।

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केंद्रीय रिजर्व बैंक की ओर से रेपो दरों को लेकर जो फैसले लिए जाते हैं, उसके तहत अगर इसमें कमी की जाती है, तो उसे मुख्य रूप से ऋण के लिहाज से सुविधाजनक माना जाता है। ऋण का सस्ता या महंगा होने का हिसाब इसी पर निर्भर करता है।

इसका सीधा और पहला असर वैसे उपभोक्ताओं पर पड़ता है, जिन्होंने घर, वाहन या अन्य सामान या फिर शिक्षा के लिए बैंकों से कर्ज लिया होता है। चूंकि रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों के अनुरूप ही व्यावसायिक बैंक उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले ऋण और अन्य सावधि जमा के मद में ब्याज की दरों का निर्धारण करते हैं, इसलिए वैसे लोग भी रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों में कमी किए जाने का इंतजार करते हैं, जो कर्ज सस्ता होने के बाद कुछ खरीदने या कहीं निवेश करने के बारे में सोच रहे होते हैं।

इस लिहाज से देखें तो इस बार नीतिगत दरों के यथावत रहने से ऋण की मासिक किस्तों में कोई बदलाव नहीं होगा। इससे बाजार की मौजूदा गति में कोई बड़ा अंतर शायद न आए, मगर इस वर्ष वाहन और जमीन-जायदाद के कारोबार में जो थोड़ी हलचल दिखी है, उसमें स्थिरता कायम रहने की उम्मीद की जा सकती है।