फौरी तौर पर ही सही, पहला कदम तो सरकार ने यह उठाया कि हिंसा को बढ़ावा देने वाले गीतों और हथियारों के प्रदर्शन पर रोक लगा दी। अब सार्वजनिक स्थानों पर हथियारों का प्रदर्शन नहीं किया जा सकेगा। यानी सार्वजनिक समारोह, धार्मिक स्थलों, शादियों और इसी तरह के आयोजनों में हथियारों के प्रदर्शन और इस्तेमाल पर रोक रहेगी।

यानी सरकार का सारा जोर हथियारों पर रोक को लेकर है, क्योंकि राज्य में तेजी से पनप रही बंदूक संस्कृति ने सरकार की नींद उड़ा दी है। छोटे-मोटे विवादों में भी लोग आवेश में आ जाते हैं और हथियारों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। ऐसे विवाद दुश्मनी में बदलते देर नहीं लगती और इसका नतीजा उसी खूनखराबे के रूप में सामने आता है जो पिछले कुछ महीनों में देखने को मिलता रहा है।

हालांकि पंजाब में आपराधिक गिरोहों का इतिहास पुराना है और अब तो यह साफ हो गया है कि राज्य में जिस तरह के अपराध हो रहे हैं, उन्हें अंजाम देने वाले सरगना विदेशों में बैठे हैं। कुछ महीने पहले पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद तो कोई संदेह ही नहीं रह गया कि राज्य में अपराध किस तेजी से बढ़ रहे हैं।

सरकार को लग रहा है कि हथियारों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा कर अपराधों पर लगाम लगाई जा सकती है। इसीलिए नए हथियार जारी करने पर पाबंदी लगा दी गई है। साथ ही पुराने लाइसेंसों की हर तीन महीने में समीक्षा करने की बात कही जा रही है। हालांकि ये सब कदम ऐसे हैं जो पहले भी उठाए जा सकते थे। लेकिन मूसेवाला की हत्या के बाद भी सरकार सोती रही। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले दिनों दो और हत्याएं हो गईं।

चार नवंबर को शिवसेना (टकसाली) के नेता सुधीर सूरी और दस नवंबर को डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी प्रदीप सिंह को मार दिया गया। जिस तरह से बेखौफ आपराधिक तत्वों ने इन घटनाओं को अंजाम दिया, वह सरकार की कानून व्यवस्था के मुंह पर तमाचा है। क्या सरकार को यह नहीं देखना चाहिए कि हथियारों तक लोगों की पहुंच इतनी आसान कैसे होती जा रही है? आखिर राज्य पुलिस का सूचना तंत्र कर क्या रहा है? खुफिया एजंसियां क्या कर रही हैं?

दूसरे राज्यों के मुकाबले पंजाब कई मायनों में कहीं ज्यादा संवेदनशील राज्य है। यह राज्य पाकिस्तान की सीमा से सटा है। सीमा पार से हथियारों और नशीली पदार्थों की तस्करी कोई छिपी बात नहीं है। अब तो पाकिस्तान की ओर से यहां ड्रोन से भी हथियार गिराने की घटनाएं आम हो गई हैं। ऐसे में कड़ी सुरक्षा की जरूरत है। वैसे पंजाब में सीमाई इलाकों में सीमा सुरक्षा बल और सेना भी तैनात रहती ही है, लेकिन राज्य पुलिस की भूमिका कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। जाहिर है, हर स्तर पर पुलिस तंत्र को मजबूत बनाने की जरूरत है।

पुलिस तंत्र अपनी जिस तरह कार्य शैली और संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है, उससे लगता नहीं कि आपराधिक तत्व आसानी से काबू आ पाएंगे। कौन नहीं जानता कि हथियारों के लाइसेंस किस तरह से दिए जाते हैं और कैसे बाजार में चोरी-छिपे हथियारों का धंधा चलता रहा है। क्या बिना स्थानीय पुलिस की सांठगांठ के बिना यह सब संभव है? बड़ा संकट तो यह है कि पंजाब में खालिस्तानी तत्व फिर से सक्रिय हो रहे हैं। नशे का कारोबार जोरों पर है ही। ऐसे में सरकार अगर नहीं चेती तो हालात बदतर होते देर नहीं लगने वाली।