पढ़ने की संस्कृति व्यक्ति के बौद्धिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ाती है। इससे हमारे जेहन में शब्दों के संग्रहण का विस्तार होता है, आलोचनात्मक सोच विकसित होती है और रचनात्मकता एवं कल्पनाशीलता को बढ़ावा मिलता है, जो हमें समाज में एक जिम्मेदार और विवेकपूर्ण नागरिक बनता है। मगर आज के डिजिटल तकनीक के दौर में खासकर बच्चे और युवाओं की अंगुलियां पुस्तक के पन्नों को पलटने के बजाय मोबाइल फोन और लैपटाप पर ही चलने लगी हैं। यह वास्तव में चिंता का विषय है।
अब उत्तर प्रदेश सरकार ने विद्यार्थियों में पढ़ने की संस्कृति को मजबूत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके तहत राज्य के स्कूलों में हिंदी और अंग्रेजी के प्रमुख समाचार पत्र उपलब्ध कराने तथा सुबह की प्रार्थना सभा में कम से कम दस मिनट का समय विद्यार्थियों द्वारा इन्हें पढ़ने के लिए निर्धारित करने का निर्देश दिया गया है।
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इससे पहले हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष जून में सरकारी स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान विद्यार्थियों के समाचार पत्र पाठ की व्यवस्था लागू की गई थी। इस पहल को अब उत्तर प्रदेश सरकार ने आगे बढ़ाया है। इसके तहत विद्यार्थी प्रतिदिन राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और खेल समाचारों के साथ-साथ प्रमुख संपादकीय भी पढ़ेंगे। साथ ही विद्यार्थी अखबारों से पांच कठिन शब्द चुनकर उन्हें सूचना पट्ट पर प्रमुखता से प्रदर्शित करेंगे।
यह व्यवस्था कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है। इससे न केवल विद्यार्थियों में सामान्य ज्ञान, शब्दावली, रचनात्मकता और संवाद कौशल विकसित होगा, बल्कि उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहतर ढंग से तैयारी करने में भी मदद मिलेगी। पढ़ने की संस्कृति अगर फिर से बच्चों की आदत में शुमार हो जाए, तो मोबाइल या लैपटाप की स्क्रीन पर जरूरत से ज्यादा समय बिताने की उनकी प्रवृत्ति भी धीरे-धीरे कम हो सकती है।
मगर, यह पहल तभी सार्थक होगी, जब इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के सही मायने में धरातल पर उतारा जाएगा और इसकी निरंतरता को बनाए रखा जाएगा। इसके साथ-साथ सरकारी पुस्तकालयों में भी विद्यार्थियों की आसान पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए।
