यह बेहद अफसोसनाक है कि तमाम प्रयासों और चिंताएं जताने के बावजूद देश में बलात्कार जैसे घिनौने अपराध की वारदातें कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही हैं। इस सिलसिले का खतरनाक पहलू यह है कि बलात्कारी बर्बरता की हदें पार करने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। बरेली के पास शीशगढ़ की ऐसी ही घटना में बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने एक तीस वर्षीय महिला से न केवल सामूहिक बलात्कार किया बल्कि छीनाझपटी में उसके नवजात शिशु को जमीन पर पटक कर मार डाला।

यह महिला अपने चौदह दिन के बीमार बेटे को इलाज के लिए बहन के पास ले गई थी। वहां से लौटते हुए बस की अन्य सवारियों के उतरने पर जब वह भी उतरने लगी तो ड्राइवर-कंडक्टर ने उसे वापस बस में खींच लिया और अपनी हवस का शिकार बना डाला। महिला की गोद में नवजात शिशु को देख कर भी दोनों नहीं पसीजे और बच्चे की मौत के बाद उसकी मां से बलात्कार करते रहे। पुलिस ने हालांकि उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया है लेकिन क्या कोई भी सजा एक बेबस अकेली औरत और उसके बच्चे के साथ हुए इस दिल दहलाने वाले अपराध का वाजिब प्रतिकार कही जा सकती है?

चलती बसों, कारों-टैक्सियों, ट्रेनों में महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ या यौन प्रताड़ना के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। हर वारदात के बाद कुछ समय के लिए तमाम हलकों में ऐसे अपराधों पर चिंता जताई जाती है। सरकार, पुलिस, नेता, अधिकारी सब दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के आश्वासन देते हैं मगर चंद रोज बाद फिर ऐसी ही किसी वारदात के इंतजार में लंबी तान कर सो जाते हैं। सोलह दिसंबर की सर्द रात में दिल्ली की चलती बस में बर्बर सामूहिक बलात्कार और बाद में पीड़िता की मौत से पैदा जनरोष ने जैसे पूरे देश को नींद से जगा दिया था। लेकिन कुछ कड़े कानूनी प्रावधानों के सिवा हम क्या कर पाए हैं?

उस कांड को एक महीना भी नहीं हुआ था कि पंजाब के मोगा में जनवरी 2013 में चलती बस में छह दुष्कर्मियों ने तेरह साल की एक लड़की को बस से धकेल कर मार डाला और फिर उसकी मां से सामूहिक बलात्कार किया था। यह मामला तब लोकसभा तक में गूंजा था क्योंकि जिस बस में वारदात हुई थी वह पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के परिवार की कंपनी की बताई गई थी। उसके बाद बंगलुरु, भोपाल, सिंगरौली, दादरी सहित देश के अनेक हिस्सों से बसों या कारों में बलात्कार के मामले सामने आए। आखिर हमारा सार्वजनिक परिवहन महिलाओं के लिए कब महफूज होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर 2012 के एक आदेश में सभी राज्य सरकारों से कहा था कि वे अपने यहां बस अड््डों, रेलवे स्टेशनों, मेट्रो स्टेशनों, शॅपिंग मॉलों, सिनेमाघरों, पार्कों आदि सार्वजनिक जगहों पर नजर रखने के लिए सादे कपड़ों में महिला सिपाहियों को तैनात करें, लेकिन शायद ही किसी राज्य सरकार ने ऐसा किया हो। महिलाओं की सुरक्षा के तकाजे की यह उपेक्षा देश में हर तरफ नजर आती है, नतीजतन वे अपराधियों के लिए आसान शिकार बनी हुई हैं। बलात्कार स्त्री-विरोधी बीमार मानसिकता से प्रेरित घृणित अपराध है। स्त्री को केवल देह तक सीमित माल मानने की इस मानसिकता के कारणों की सूक्ष्म पहचान और इन्हें दूर करने की भी जरूरत है।