बरसात में जलजमाव और उससे शहरों का अस्त-व्यस्त जीवन अब हर वर्ष का स्थायी दृश्य हो गया है, मगर इसके मद्देनजर सरकार को पूर्व तैयारी करने की जरूरत शायद कभी महसूस नहीं होती। सामान्य से थोड़ा अधिक पानी बरसते ही शहरों की सड़कें लबालब हो जाती हैं, मुहल्ले तालाबों में तब्दील हो जाते हैं। लोगों का दफ्तर, स्कूल, व्यवसाय आदि के लिए निकलना मुश्किल हो जाता है। खासकर मुंबई के लोगों को हर वर्ष बरसात में ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अभी बरसात का मौसम शुरू ही हुआ है और मुंबई में सड़कों पर पानी भर गया, रेल की पटरियां डूब गईं, कई रेलगाड़ियां रद्द करनी पड़ीं, बसें रुक गईं, कई दफ्तरों और स्कूलों में कामकाज बंद करना पड़ गया। यहां तक कि सोमवार को महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों का कामकाज स्थगित करना पड़ गया।
भारी बारिश की वजह से समंदर में ज्वार उठने के संकेत दे दिए गए। बरसात का असर रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली चीजों पर भी पड़ता है। अक्सर इस मौसम में फलों, सब्जियों के दाम इसलिए आसमान छूने लगते हैं कि माल ढुलाई में बाधा आती है। जिन इलाकों में भारी बरसात होती है, वहां फसलें चौपट हो जातीं और सब्जियों का उत्पादन घट जाता है। दिल्ली में बारिश की वजह से थोक मंडियों में सब्जियां नहीं पहुंच पाने से लोगों को ऊंची कीमत चुकानी पड़ रही है।
हर वर्ष बरसात में जलभराव को लेकर विधानसभाओं में सवाल उठाए जाते हैं, लोग सड़कों पर उतर कर आंदोलन करते देखे जाते हैं। हर बार आश्वासन दिया जाता है कि जलनिकासी की व्यवस्था दुरुस्त कर ली जाएगी, मगर स्थिति फिर भी जस की तस बनी रहती है। पिछले वर्ष दिल्ली में बाढ़ आई और यमुना उफन कर लाल किले तक पहुंच गई, तो काफी शोर मचा था। तब दिल्ली सरकार ने कहा था कि हरियाणा ने बिना चेतावनी दिए पानी छोड़ दिया, इसलिए यह समस्या उत्पन्न हुई। इस वर्ष दावा किया गया था कि पिछले वर्ष जैसी समस्या नहीं आएगी। मगर पहली ही बारिश में जिस तरह कई इलाकों में जलजमाव देखा गया, उससे लगता नहीं कि समस्या का समाधान हो गया है।
शहरों में जलजमाव की बड़ी वजह बरसात से पहले नालों की समुचित सफाई न होना पाना है। जिन नालों और नालियों की गाद निकाली जाती है, उसे किनारे पर छोड़ दिया जाता है, जो बरसाती पानी के साथ बह कर फिर से नालियों में भर जाता है। कई जगहों पर जलनिकासी का समुचित प्रबंध न किया जाना भी बड़ी वजह है। जिन इलाकों में अनियोजित तरीके से बस्तियां बसा दी गई हैं, वहां जलनिकासी के इंतजाम नहीं किए गए। जो नालियां बनी भी हैं उनकी पर्याप्त क्षमता नहीं है, जिसके चलते सामान्य से जरा भी अधिक पानी बरसता है, तो उसे निकलने में काफी वक्त लग जाता है।
समझना मुश्किल है कि शहरों की नगर पालिकाएं हर वर्ष इस समस्या का सामना करती हैं, फिर भी वे कोई स्थायी समाधान निकालने का प्रयास क्यों नहीं करतीं। महाराष्ट्र विधानसभा में जलभराव को लेकर हंगामा हुआ, दिल्ली में भी इसे लेकर सियासी रस्साकशी हई। जब-जब समस्या गंभीर होगी, सब इसे राजनीतिक रंग देने का प्रयास करेंगे। मगर जलभराव जैसी समस्या का समाधान इतना जटिल क्यों बना हुआ है, यह समझ से परे है। आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने को लेकर भी लापरवाही बरती जाती है। इसका नतीजा हर वर्ष लोगों को जलजनित बीमारियों के रूप में भी भुगतना पड़ता है।