पंजाब में बरनाला जिले के एक गांव में नशे के खिलाफ उठी एक आवाज जिस तरह दफ्न कर दी गई, उससे यह साफ है कि नशे के सौदागर अपना कारोबार बचाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। कहा जाता है कि सामाजिक सुधार के अभियान को केवल कानून और पुलिस के दम पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इसके लिए समाज को भी आगे आना होगा। इस लिहाज से देखें तो बरनाला जिले के छना गुलाब सिंह वाला गांव के नवनिर्वाचित सरपंच उम्मीद की किरण थे। मगर उनकी हत्या इसलिए कर दी गई कि वे अपने गांव में नशे के खिलाफ मुहिम चला रहे थे।

नशा कर रहे युवाओं को रोकना पड़ा भारी

खबर के मुताबिक, हाल में उन्होंने नशे का इंजेक्शन लगा रहे युवाओं रोका भी था। यों भी, मादक पदार्थों के लत में डूबी पीढ़ी को बचाने के लिए समाज को ही सबसे पहले आगे आना होगा। इस नाते युवा सरपंच ने अपनी जिम्मेदारी निभाई थी, लेकिन इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इससे यह भी पता चलता है कि मादक पदार्थों के दंश को कम करने के प्रति सरकार का रवैया कितना ढीला-ढाला है और उससे उपजी आपराधिक प्रवृत्ति की रोकथाम में वह किस स्तर पर नाकाम है

तेजी से फैल रहा नशे का कारोबार

हैरानी की बात है कि एक तरफ सरकार ठोस कार्रवाई करने का आश्वासन देती रही और दूसरी तरफ नशे का कारोबार फैलता गया। सवाल है कि किसकी सांठगांठ से यह धंधा फल-फूल रहा है? राज्य के सीमावर्ती गांवों और कस्बों में स्थिति बहुत खराब बताई जाती है। योजनाएं बनाने और सिर्फ आश्वासन देने में समय बर्बाद करने के बजाय जरूरत इस बात की थी कि मादक पदार्थों पर पाबंदी लगाई जाती। समाज को भी इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए था, लेकिन किसी के लिए यह कोई जरूरी काम नहीं था।

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राज्य की सरकार भले ही नशीले पदार्थों की खरीद-बिक्री रोकने और इसके खिलाफ अभियान चलाने के दावे करती हो, लेकिन हकीकत यही है कि वहां भारी संख्या में युवा नशे की गिरफ्त में गहरे फंसते गए हैं। कुछ बड़े शहरों में इसकी लत तेजी से बढ़ी है। कई तरह के मादक पदार्थों का सेवन कोई नई बात नहीं है। मगर यहां के युवाओं में जिस तरह मादक पदार्थों के इंजेक्शन और ‘कैप्सूल’ लेने का चलन बढ़ा है, यह गंभीर चिंता की बात है।