पंद्रह साल में पहली बार भारत के किसी प्रधानमंत्री का तेहरान जाना हुआ। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा की अहमियत केवल इस लंबे अंतराल से जाहिर नहीं होती। उनकी इस यात्रा को ऐतिहासिक माना जा रहा है, तो इसके और भी कई कारण हैं। वे तेहरान ऐसे वक्त गए, जब ईरान को अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक प्रतिबंधों से निजात मिले चार महीने हो चुके हैं। यानी अब दोनों पक्ष द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के कदम बेहिचक उठा सकते हैं; उन्हें दुनिया खासकर पश्चिमी देशों की नाराजगी नहीं झेलनी होगी। अहमदीनेजाद के राष्ट्रपति रहते ईरान के सबसे तकरार भरे रिश्ते अमेरिका के साथ थे। पर ईरान की कमान हसन रूहानी के हाथ में आने के बाद अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से उसके संबंध तेजी से सुधरने लगे। राष्ट्रपति रूहानी विवादित परमाणु कार्यक्रम को बंद करने के लिए राजी हो गए, और बदले में ईरान पर चले आ रहे प्रतिबंध हटा लिए गए। इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना जरूरी है, क्योंकि एटमी विवाद के अरसे में ऐसे भी मौके आए जब भारत का रुख ईरान को रास नहीं आया होगा। आइएइए यानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में भारत ने दो बार ईरान के खिलाफ वोट दिया था।

पर उन कड़वी यादों को पीछे छोड़ कर दोनों देश आपसी सहयोग के एक नए मुकाम पर खड़े हैं, चाबहार बंदरगाह और फरजाद-बी गैस क्षेत्र के विकास के लिए हुए करार इसी नई साझेदारी के प्रतीक हैं। चाबहार बंदरगाह को भारत के सहयोग से विकसित करने का इरादा ईरान ने पहली बार 2003 में जताया था, जब वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी दिल्ली आए थे। लेकिन ईरान के परमाणु कार्यक्रम के विवाद और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां अनुकूल न होने की वजह से, तमाम दिलचस्पी के बावजूद, चाबहार के मामले में भारत के हाथ बंधे रहे। पर अब हुए करार के मुताबिक ईरान के दक्षिण-पूर्वी तट पर बनने वाले चाबहार बंदरगाह के पहले चरण के विकास का जिम्मा उठाने और बीस करोड़ डॉलर के निवेश के लिए भारत राजी हो गया है। इसके अलावा, भारत के सहयोग से चाबहार और जाहेदान के बीच पांच सौ किलोमीटर लंबी रेल लाइन का निर्माण भी होगा।

चाबहार बंदरगाह ईरान के साथ-साथ भारत के लिए भी बहुत मायने रखता है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापार का सीधा रास्ता तो खुलेगा ही, चाबहार के जरिए भारत आसानी से अफगानिस्तान ही नहीं, उससे आगे मध्य एशिया तक पहुंच बना सकेगा। अभी इसके लिए भारत को पाकिस्तान का मुंह जोहना पड़ता है, और पाकिस्तान इसके लिए अक्सर राजी नहीं होता। चाबहार को चीन की मदद से बने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के प्रति-संतुलन और पाकिस्तान पर चीन के प्रभाव की काट के तौर पर भी देखा जा रहा है। पर इस सब का यह मतलब नहीं कि मोदी की ईरान यात्रा को चाबहार पर हुए करार तक सीमित करके देखा जाए। सच तो यह है कि भारत और ईरान के बीच व्यापार, आवाजाही, निवेश, ऊर्जा और कूटनीतिक सहयोग के चढ़ते ग्राफ का चाबहार एक प्रतीक है। चाबहार को लेकर हुए करार की तरह भारत के लिए एक और उल्लेखनीय उपलब्धि है, फारस की खाड़ी में खोजे गए फरजाद-बी गैस क्षेत्र के विकास के अधिकार ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) को मिलना। इसके अलावा ईरान के ऊर्जा संसाधनों में बीस अरब डॉलर के निवेश का खाका भारत ने तैयार कर लिया है। ईरान के अलग-थलग पड़े रहने की वजह से संभावनाओं के जो द्वार बंद थे वे अब खुलने लगे हैं।