महिला सुरक्षा को लेकर चौतरफा गहरा असंतोष है। कोलकाता महिला चिकित्सक बलात्कार और हत्या कांड के बाद महिला सुरक्षा संबंधी कानूनों को कड़ाई से लागू करने और यौन उत्पीड़न संबंधी मामलों में त्वरित कार्रवाई की जरूरत फिर से रेखांकित की जा रही है। कोलकाता में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। उस घटना पर हर राजनीतिक दल और बड़ा नेता अपनी संवेदना व्यक्त कर चुका है। राष्ट्रपति ने भी कहा कि अब बहुत हो चुका, ऐसी घटनाएं किसी भी रूप में रुकनी ही चाहिए। अब प्रधानमंत्री ने जिला न्यायालयों के न्यायाधीशों के सम्मेलन में उनसे अपील की कि महिला और बाल उत्पीड़न संबंधी मामलों में वे शीघ्र सुनवाई करें, ताकि उन्हें इंसाफ मिल सके और अपराधियों में खौफ पैदा हो।

अपराधियों में कानून का भय पैदा नहीं होने से बढ़े अपराध

हकीकत यही है कि बलात्कार और बाल यौन उत्पीड़न जैसे मामलों पर नकेल कसना इसीलिए मुश्किल बना हुआ है कि अपराधियों में कानून का भय पैदा नहीं हो सका है। निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा संबंधी कानूनों को और सख्त बनाया गया था। बाल यौन शोषण के विरुद्ध पाक्सो कानून बना था, जिसमें आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी और जमानत तक न देने का कड़ा प्रावधान किया गया। मगर उन कानूनों का भय कहीं नजर नहीं आता।

कड़े कानून बना देने भर से अपराधों पर लगाम लगने का भरोसा पैदा नहीं किया जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि उन्हें सही तरीके से अमल में लाया जाए और न्यायालयों में शीघ्र निर्णय हो। मगर हकीकत यह है कि महिला उत्पीड़न संबंधी ज्यादातर मामलों में समय पर कार्रवाई नहीं हो पाती। बहुत सारे मामलों में तो प्राथमिकी दर्ज करने में ही कई दिन लग जाते हैं। इस तरह बलात्कार जैसे मामलों में जरूरी सबूत भी ठीक से उपलब्ध नहीं हो पाते। फिर, जांचों में पुलिस इतना विलंब कर देती है कि सुनवाई वर्षों तक चलती रहती है।

इसके अलावा सबसे चिंता की बात यह है कि बलात्कार के मामले में दोष सिद्धि की दर बहुत न्यून है। सबूतों के अभाव में अपराधी छूट जाते हैं। पाक्सो जैसे कानून में भी अनेक बार देखा गया है कि रसूखदार आरोपियों के मामले में पुलिस गिरफ्तारी तक को टालती रहती है। फिर गवाहों और पीड़िता तक को डरा-धमका या लोभ-लालच देकर बयान पलटने पर मजबूर कर दिया जाता है। इन स्थितियों से अदालतें अनजान नहीं हैं। मगर आमतौर पर निचली अदालतें उस तरह पुलिस पर जांचों में तेजी और निष्पक्षता लाने का दबाव नहीं बना पातीं, जिस तरह कई बार ऊपरी अदालतें करती हैं।

फिर, अदालतों पर मुकदमों का बोझ अधिक होने की वजह से मामलों की सुनवाई लंबे समय के लिए टलती रहती है। महिला यौन उत्पीड़न के मामलों में प्रावधान किया गया कि उन्हें त्वरित अदालतों में निपटाया जाए। साल भर के भीतर उन पर फैसला देने का प्रयास हो। मगर जो मामले खूब विवादों और चर्चा में रहते हैं, उनकी सुनवाई भी जल्दी पूरी नहीं हो पाती। जिन देशों में आपराधिक मामलों में सख्त और तेज कार्रवाई होती है, वहां अपराध की दर काफी नीचे देखी जाती है। महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध देश के किसी भी हिस्से में हो, अगर पुलिस तुरंत सक्रिय होकर कार्रवाई करे, जिला अदालतें महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े मामलों में सख्ती और तत्परता दिखाएं, तो ऐसी आपराधिक प्रवृत्तियों पर लगाम लगाना आसान हो जाएगा। कानून का भय अपराध को रोकने में सबसे कारगर उपाय होता है।