देश की राजधानी होने के बावजूद दिल्ली की हवा हर अगले वर्ष जिस हालत में जा रही है, उससे साफ है कि यहां इस समस्या पर काबू पाने के सरकारी दावे सिर्फ हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में प्रदूषण एक बार फिर इस स्थिति में पहुंच चुकी है कि यह न केवल देश के भीतर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय चिंता का भी विषय बन गया है। गुरुवार को समूचे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा और जहरीली हो गई और लोगों के लिए सांस लेना तक मुश्किल हो गया। दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक साढ़े चार सौ के पास यानी ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज किया गया। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अजरबैजान के बाकू में चल रहे जलवायु सम्मेलन में भी दिल्ली के प्रदूषण के मसले पर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की। यह स्थिति तब है, जब इस मौसम में यानी ठंड की आहट के साथ ही दिल्ली के ज्यादातर लोगों को हर वर्ष धुंध, धुएं की चादर और हवा में विषाक्त तत्त्वों के घुलने की वजह से बहुस्तरीय मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
दिल्ली में सरकार को ‘ग्रैप 3’ स्तर की पाबंदियां लगानी पड़ी है
पिछले कई वर्षों से दिल्ली में लगातार यही तस्वीर बनी हुई है कि दिवाली और ठंड की आहट के साथ ही प्रदूषण इस कदर बढ़ने लगता है कि कई स्तरों पर आम जनजीवन तक बाधित होने लगता है। एक ओर वायुमंडल के घनीभूत होने की वजह से हवा ऊपर नहीं उठ पाती, दूसरी ओर ज्यादातर लोगों को अपने रोजमर्रा के कामों में से वैसे काम कम से कम कुछ दिन रोक देना जरूरी नहीं लगता, जिसकी वजह से हवा में प्रदूषण तत्त्व घुल जाते हैं। हालांकि इसका खमियाजा उन्हें ही उठाना पड़ता है। अब एक बार फिर हालत हो चली है कि दिल्ली में सरकार को ‘ग्रैप 3’ स्तर की पाबंदियां लगानी पड़ी है। इसके तहत कई स्तर पर निर्माण कार्यों पर रोक के साथ-साथ वैसे वाहनों को यहां चलने की इजाजत नहीं दी जाएगी, जिनसे प्रदूषण की समस्या गहराने की आशंका हो।
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पांचवी कक्षा तक के बच्चों के लिए फिलहाल स्कूल भी बंद कर दिए गए हैं, हालांकि उनकी आनलाइन पढ़ाई जारी रहेगी। सवाल है कि जब हर वर्ष इन महीनों के दौरान दिल्ली में यह स्थिति पैदा हो जाती है तब सरकार को समय रहते पहले से ऐसे इंतजाम करना जरूरी क्यों नहीं लगता, जिससे अचानक ही आपात स्थिति की तरह प्रदूषण की रोकथाम के उपाय करने या विशेष नियम लागू करने की जरूरत पड़ जाती है। आखिर कृत्रिम वर्षा तक की जरूरत बताने की नौबत क्यों आती है?
यह समस्या बढ़ कर अब संकट की शक्ल ले चुकी है, मगर सरकार को अब भी दिल्ली की हवा में जहर घुलने के कारकों की ठीक-ठीक पहचान करना और उस पर काबू पाने के लिए पूर्व-इंतजाम करना जरूरी नहीं लगता है। बहुत सारे लोगों के बीच सुविधाओं के इस्तेमाल को लेकर जितनी सक्रियता दिखती है, उतनी ही संवेदनशीलता स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिए प्रदूषण पर काबू रखने में अपनी सहभागिता को लेकर नहीं दिखाई देती। पराली जलाने और निर्माण कार्य जैसी गतिविधियों को कुछ समय के लिए अपनी ओर से टाला जा सकता है। निजी वाहनों और कार्बन पैदा करने वाली अन्य सुविधाओं का इस्तेमाल सीमित किया जा सकता है। हालांकि अगर अगले कुछ दिनों में हवा चली तो प्रदूषण में कमी आ सकती है, लेकिन समय रहते इस संकट से निपटने को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वक्त में कई तरह की जटिल स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।