इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जिस अव्यवस्था और लापरवाही की वजह से कोलकाता के एक मेडिकल कालेज में एक महिला डाक्टर की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई, उसमें सुधार और सख्ती का सवाल सरकार के लिए शायद अब भी नजरंदाज करने लायक है। इसमें दो राय नहीं कि इस वारदात के बाद लोगों के भीतर दुख और आक्रोश है और अस्पताल के भीतर सुरक्षा इंतजामों पर उठने वाले सवाल भी स्वाभाविक हैं। मगर इसकी आड़ में कुछ लोगों की भीड़ को अराजकता पैदा करने की छूट नहीं मिल जाती है।

हिंसा पर उतारू लोगों ने अस्पताल के आपातकालीन विभाग को भी नहीं बख्शा

गौरतलब है कि महिला डाक्टर की बलात्कार के बाद हत्या के मामले में बुधवार की रात डाक्टरों के विरोध प्रदर्शन के दौरान बाहर से लोगों की एक भीड़ आई और उसने हिंसा और व्यापक पैमाने पर तोड़फोड़ की। खबरों के मुताबिक, उस भीड़ में शामिल लोगों ने प्रदर्शन स्थल, वाहनों और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। यहां तक कि अस्पताल के आपातकालीन विभाग को भी नहीं बख्शा गया और सीसीटीवी की भी तोड़फोड़ की गई।

एक बेहद त्रासद घटना पर विरोध प्रदर्शन के दौरान बाहर से पहुंची भीड़ ने जो किया, वह या तो सुनियोजित लगता है या फिर पूरी तरह अराजक। अब एक ओर वहां सत्ताधारी से लेकर विपक्ष के सभी दल हिंसा करने वाली भीड़ में शामिल लोगों की पहचान करने और सख्त कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं, तो दूसरी ओर पुलिस का कहना है कि यह घटना भ्रामक प्रचार अभियान की वजह से हुई। सवाल है कि जिस अव्यवस्था की वजह से एक डाक्टर की हत्या कर दी गई, उसके बाद भी पुलिस और प्रशासन को स्थिति की गंभीरता क्यों नहीं समझ में आई।

सरकार का दायित्व क्या था? अस्पताल परिसर में एक अपराध के हो जाने के बावजूद वहां सुरक्षा व्यवस्था की हालत यह थी कि कोई अराजक भीड़ वहां घुसी और उसने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। इससे अचानक उपजी परिस्थिति से निपटने की पुलिस की क्षमता और इच्छाशक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि इस संवेदनशील मामले पर सरकार से लेकर सभी पक्ष हर स्तर पर कानूनी तकाजों को पूरा करने, दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने पर जोर दें, ताकि इंसाफ सुनिश्चित हो सके।