पिछले कुछ वर्षों से पंजाब में खालिस्तानी अलगाववाद की आग फिर से लहकाने की कोशिश हो रही है। इसके तार ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका और सीमावर्ती पाकिस्तान से जुड़े पाए गए हैं। हालांकि पंजाब पुलिस और खुफिया एजंसियों की तत्परता से ऐसी कोशिशों को समय रहते नाकाम कर दिया गया, मगर अब भी कुछ युवा गुमराह होकर इस रास्ते पर निकलते देखे जाते हैं। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में मारे गए तीन खालिस्तान समर्थक युवा इसके ताजा उदाहरण हैं। ये तीनों खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के सदस्य बताए जा रहे हैं।
इस संगठन का अगुआ रणजीत सिंह नीता है और इसे ग्रीस में रहने वाले जसविंदर सिंह मन्नू द्वारा संचालित किया जाता है। बताया जा रहा है कि इस संगठन को ब्रिटेन में रहने वाले और ब्रिटिश सेना में सेवारत जगजीत सिंह द्वारा नियंत्रित किया जाता है। पीलीभीत में मारे गए तीनों युवकों को पंजाब पुलिस को तलाश थी। उन पर आरोप था कि उन्होंने गुरदासपुर की पुलिस चौकी पर हथगोले से हमला किया था। पंजाब पुलिस उनका पीछा करते हुए पीलीभीत पहुंची थी और वहां की पुलिस को इन तीनों के बारे में जानकारी दी थी। दोनों पुलिस दल के संयुक्त अभियान में तीनों अलगाववादियों को मार गिराया गया।
चरमपंथियों के पास से मिले अत्याधुनिक हथियार और गोली-बारूद
अच्छी बात है कि पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते हुए वांछित अपराधियों का पीछा किया और उनकी तरफ से किए गए हमले का सावधानी से सामना किया। मगर पंजाब में अलगाववादी चरमपंथियों का मनोबल अब भी तोड़ने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है, तो यह चिंता की बात है। मारे गए चरमपंथियों के पास से अत्याधुनिक हथियार और भारी मात्रा में गोली-बारूद बरामद किया गया है।
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माना जा रहा है कि ये तीनों उत्तर प्रदेश से सटी नेपाल की सीमा में घुसपैठ कर जाना चाहते थे। जहां वे मुठभेड़ में मारे गए, वहां से नेपाल की सीमा थोड़ी ही दूरी पर है। पंजाब भी सीमावर्ती राज्य है और पाकिस्तान से जब-तब आतंकी चुनौतियां मिलती रहती हैं। मारे गए युवकों के पास से बरामद हथियार उन तक कहां से पहुंचे, यह फिलहाल जांच का विषय है, पर अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि सीमा पार से उन्हें मदद मिली होगी।
पंजाब में खालिस्तान की मांग जोर नहीं पकड़ रहा
हालांकि पंजाब में पाकिस्तान से लगी सीमा के पचास किलोमीटर के दायरे में सीमा सुरक्षा बल को निगरानी, जब्ती, गिरफ्तारी आदि की शक्तियां दे दी गई हैं। पहले केवल पंद्रह किलोमीटर के दायरे में वह निगरानी रख सकता था। इसके बावजूद ड्रोन आदि के जरिए वहां हथियार गिराने की अक्सर घटनाएं हो जाती हैं।
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यह ठीक है कि पंजाब में खालिस्तान की मांग जोर नहीं पकड़ रही है और न इसकी गुंजाइश नजर आती है, मगर विदेश में बैठे कुछ चरमपंथी पंजाब के युवाओं को गुमराह कर हाथ में बंदूक उठाने को प्रेरित करने में कामयाब हो जा रहे हैं, तो यह चिंता की बात है। हालांकि भारत सरकार कनाडा आदि की सरकारों को ऐसे चरमपंथियों के बारे में दस्तावेज सौंपती और कार्रवाई की मांग करती रही है, मगर उनका अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता।
कनाडा के साथ तो इस मसले पर रिश्ते खराब हो चुके हैं। ऐसे में सरकार को अपने स्तर पर ही अधिक चौकस और पैनी निगाह रखनी पड़ेगी। खुफिया एजंसियों को ऐसी गतिविधियों पर अधिक चौकन्ना होकर नजर रखने की जरूरत है। अगर सीमा पार से ऐसे लोगों को मदद मिल पा रही है, तो इसे लेकर व्यावहारिक उपाय जुटाने होंगे।