बारामूला में एक आतंकी की गिरफ्तारी कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान की एक बड़ी उपलब्धि है। सेना व पुलिस की साझा कार्रवाई के तहत पकड़े गए अब्दुल रहमान नाम के इस आतंकी को जैश-ए-मोहम्मद ने कश्मीर में फिदायीन हमलों के लिए आधार तैयार करने और युवकों की भर्ती के इरादे से भेजा था। वह खुद एक फिदायीन हमले की फिराक में था। जाहिर है, उसकी गिरफ्तारी के चलते एक फिदायीन हमले की साजिश तो नाकाम हुई ही, इस तरह के और भी बड़े षड्यंत्र को भेदने में सफलता मिली है। यही नहीं, रहमान का पकड़ लिया जाना इस लिहाज से भी बहुत मायने रखता है कि उसके जरिए सेना और पुलिस को जैश की कार्यप्रणाली को समझने, उसके नेटवर्क को भेदने तथा उसके खास किरदारों की पहचान करने में मदद मिलेगी। रहमान पिछले साल अगस्त में ऊधमपुर में हुए हमले के बाद से जिंदा पकड़ा गया चौथा आतंकी है।
इसी तरह की एक कामयाबी सेना को इस साल फरवरी में मिली थी, जब उसने मोहम्मद सादिक को पकड़ा था। सादिक भी जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा था और उस चार सदस्यीय गिरोह का हिस्सा था जिसने पिछले साल नवंबर में तंगधार में सेना के शिविर पर हमला किया था। तीन हमलावर तो सेना की कार्रवाई में मारे गए, पर सादिक बच निकला था। फिर उसे भी जैश के उसके आकाओं ने यही कहा था कि वह यहां रुक कर नई भर्तियां करे। ताजा मामला भी आतंक के तार सीमापार से जुड़े होने का ही है। इसमें चिंता की एक नई बात यह है कि रहमान के पास से शब्बीर अहमद खान के नाम का आधार कार्ड बरामद हुआ है। क्या इस तरह के कई और मामले भी हुए होंगे, यह सोच कर अधिकारियों के कान खड़े हो गए हैं। इस साल के शुरू में पठानकोट के वायुसैनिक ठिकाने पर हुए आतंकी हमले को भी जैश ने ही अंजाम दिया था।
भारत में आतंकी घटनाओं के पीछे अधिकांशत: लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का ही हाथ रहा है, और ये दोनों आतंकी गुट पाकिस्तान की उपज हैं। जब भी उनकी कारगुजारियों की बाबत जवाबदेही का सवाल उठता है, पाकिस्तान का जवाब होता है कि ये गैर-राजकीय तत्त्व हैं, ये उसके नुमाइंदे नहीं हैं, फिर उसे क्यों कठघरे में खड़ा किया जाए? लेकिन यह बहानेबाजी के सिवा और कुछ नहीं है। रहमान से पूछताछ के जरिये अभी तक मिली सूचनाओं के मुताबिक उसे जैश के आकाओं के अलावा आइएसआइ ने भी प्रशिक्षित किया था। आइएसआइ की ऐसी भूमिका के बारे में यह कोई पहला या अकेला सुराग नहीं है।
क्या आइएसआइ को पाकिस्तान गैर-राजकीय तत्त्व कह सकता है? फिर, लश्कर और जैश भले गैर-राजकीय तत्त्व हों, वे पाकिस्तान की जमीन से इतने लंबे समय से अपनी गतिविधियां कैसे संचालित करते रहे हैं? उन पर नकेल कसने में पाकिस्तान के ढुलमुल रवैए के अलावा अंतरारष्ट्रीय समुदाय की अनदेखी भी जिम्मेवार रही है। खासकर पठानकोट हमले के मद्देनजर भारत ने जैश के सरगना मसूद अजहर के खिलाफ सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति में प्रस्ताव रखा था। पर चीन के साथ न देने से वह प्रस्ताव गिर गया। चीन ने ऐसा क्यों किया इस पर वह आज तक कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे सका है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता दोहराने में चीन कभी पीछे नहीं रहा, पर जरूरत जुबानी कूटनीतिक रस्म अदायगी की नहीं, घोषित प्रतिबद्धता पर अमल की है।