दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के लाओस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने एक बार फिर एकजुटता की जरूरत रेखांकित की। यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब दुनिया के कई देश परस्पर संघर्ष में उलझे हुए हैं और इसके चलते अनेक आर्थिक समस्याएं चुनौती बन कर खड़ी हो गई हैं। विकसित कहे जाने वाले देश भी मंदी और सुस्त अर्थव्यवस्था से पार पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने ऐसी स्थिति में दक्षिण एशियाई देशों से परस्पर सहयोग और शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखने की अपील की। दक्षिण एशिया के सभी देश चीन की विस्तारवादी नीतियों के चलते किसी न किसी रूप में असहज महसूस करते हैं। इसलिए सभी ने शिखर सम्मेलन के मंच से चीन की खुल कर आलोचना की।
पीएम मोदी ने चीन को दिया कूटनीतिक संदेश
प्रधानमंत्री ने चीन का नाम लिए बगैर कहा कि हमारी नीति विकासवादी होनी चाहिए, न कि विस्तारवादी। दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सक्रियता के मद्देनजर उन्होंने समुद्री गतिविधियों के संबंधित कानूनी ढांचे ‘अनक्लोस’ के तहत ही संचालित किए जाने पर बल दिया। निगरानी की आजादी और वायु क्षेत्र सुनिश्चित करने की जरूरत भी रेखांकित की। इस पर एक ठोस और प्रभावी आचार संहिता बनाने तथा क्षेत्रीय देशों की विदेश नीति पर अंकुश लगाने की कोशिशों पर विराम लगाने के उपाय तलाशने की जरूरत भी बताई।
चीन की नीति और भारत की विकासशील भूमिका
दरअसल, चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण न केवल दक्षिण एशिया, बल्कि दूसरे कई देशों में भी कई तरह की परेशानियां पैदा हो गई हैं। चीन ऐसा जानबूझ कर करता है, ताकि तेजी से विकास कर रहे और विकसित देश संघर्षों में उलझे रहें और वह उनके बाजार में अपना वर्चस्व कायम रखे। मगर चूंकि भारत अब विकसित देश बनने के पायदान चढ़ रहा है और उसके प्रयासों से वैश्विक दक्षिण देश अपना एक नया बाजार बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं, चीन की चिंता स्वाभाविक रूप से बढ़ गई है।
दक्षिण चीन सागर में उसने इसीलिए अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। कुछ समय पहले हुए क्वाड सम्मेलन में भी भारत, अमेरिका, जापान और आस्टेलिया ने दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों पर नकेल कसने की जरूरत रेखांकित की थी। दरअसल, अब विकसित देशों को भी महसूस होने लगा है कि दक्षिण एशियाई देशों के सहयोग के बिना चीन को टक्कर देना संभव नहीं है। इन देशों को एकजुट रखने में भारत की अहम भूमिका है।
हालांकि आसियान का गठन आर्थिक मामलों में पश्चिम के विकसित देशों, चीन और रूस के वर्चस्व को तोड़ कर अपना एक बाजार विकसित करने और इस क्षेत्र में शांति और सहयोग बनाए रखने के मकसद से हुआ था। इसका असर भी दिखने लगा है। फिलहाल जिस तरह रूस और यूक्रेन लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं और उसके चलते पूरी दुनिया में आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है। फिर इजराइल और हमास के संघर्ष का दायरा बढ़ा है और उसमें विश्व की दूसरी ताकतों के भी कूद पड़ने की आशंका जाहिर की जा रही है, आसियान देशों की भूमिका आने वाले समय में और महत्त्वपूर्ण होने वाली है। निस्संदेह अगर आसियान देश इस स्थिति में एकजुटता और परस्पर सहयोग बनाए रखते हैं, तो इस क्षेत्र को वैश्विक संघर्षों की आंच कम से कम प्रभावित कर पाएगी।