प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा से स्वाभाविक ही सबको काफी उम्मीदें थीं। खुद प्रधानमंत्री भी वहां रवाना होने से पहले काफी उत्साहित थे। उन्होंने कहा था कि वे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मिलने को लेकर उत्सुक हैं। जेलेंस्की ने बहुत गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और वहां युद्ध की स्थितियों से उन्हें अवगत कराया। दोनों नेताओं के बीच बातचीत मुख्य रूप से युद्ध रोकने के उपाय तलाशने पर ही केंद्रित रही। यूक्रेन ने इच्छा जताई कि भारत शांति समझौते में सदा साथ रहे। हालांकि इस दौरान दोनों देशों ने चार समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए।
भारत ही रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग रुकवा सकता है
अधिकारियों ने बताया कि इन समझौतों से कृषि, खाद्य उद्योग, चिकित्सा, संस्कृति और मानवीय सहायता के क्षेत्र में सहयोग सुनिश्चित होगा। प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा पर इसलिए भी दुनिया की निगाहें बनी हुई थीं कि शुरू से रेखांकित किया जा रहा है कि भारत ही रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग रुकवा सकता है। हालांकि भारत शुरू से ही दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों से बातचीत कर युद्ध का रास्ता छोड़ने की अपील करता रहा है। यूक्रेन रवाना होने से पहले भी प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह दौर युद्ध का नहीं है, युद्ध से किसी समस्या का समाधान नहीं निकल सकता।
प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब हमले तेज हो गये हैं
यूक्रेन से पहले प्रधानमंत्री रूस भी गए थे। तब जेलेंस्की ने काफी नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को दुनिया का सबसे बड़ा अपराधी बताते हुए उनसे भारतीय प्रधानमंत्री के गले मिलने की आलोचना की थी। मगर अब वे भारत के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने को लेकर उत्साहित नजर आए। प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब यूक्रेन ने रूसी इलाकों में हमले तेज कर दिए हैं। इसे देखते हुए कहना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री की अपीलों का यूक्रेन या फिर रूस पर कितना असर पड़ेगा। पहले भी कई मौकों पर प्रधानमंत्री पुतिन से फोन पर बातचीत करके या फिर आमने-सामने यूक्रेन पर हमले बंद करने की अपील कर चुके हैं।
पिछले दिनों रूस जाकर भी उन्होंने पुतिन से यही अपील की थी। मगर अभी तक ऐसा कोई मौका नजर नहीं आया, जब रूस ने भारत की अपील पर संजीदगी दिखाई हो। शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान आमने-सामने बातचीत के बाद लगा था कि पुतिन ने भारतीय प्रधानमंत्री की अपील को गंभीरता से लिया है, मगर वहां से लौटते ही उन्होंने यूक्रेन पर हमले तेज कर दिए थे।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। यूक्रेन में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए हैं, उसकी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा है। यूक्रेन का वाणिज्य और व्यापार बाधित हुआ है। वह चाहता तो है कि युद्ध विराम पर समझौता हो, मगर वह रूस की शर्तें मानने को तैयार नहीं है। रूस की शर्त है कि यूक्रेन नाटो की सदस्यता त्याग दे। दोनों में से कोई, किसी भी रूप में झुकने को तैयार नजर नहीं आता। ऐसे में बातचीत की मेज पर बैठने की सूरत बने भी तो कैसे, यही सबसे कठिन सवाल है।
भारत के लिए भी बातचीत का रास्ता निकालना आसान नहीं है। मगर प्रधानमंत्री की दोनों देशों की बारी-बारी से यात्रा और युद्ध का रास्ता छोड़ने की अपील से विश्व बंधुता का रास्ता तो बना ही है। उम्मीद की जाती है कि रूस और यूक्रेन थोड़ा लचीला रुख अपनाते हुए समझौते के लिए बीच के किसी रास्ते पर चलने को तैयार हो जाएं।