पाकिस्तान आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह है। वह न सिर्फ पनाह देता है, बल्कि आतंकियों की फौज तैयार कर उनका वित्त पोषण भी करता है। वहां की सेना और खुफिया एजंसी आइएसआइ इन आतंकियों को भारत के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार पाकिस्तान की इन नापाक हरकतों को सबूतों के साथ उजागर कर चुका है। इसके बावजूद वह आतंकवाद से अपने जुड़ाव को हमेशा नकारता रहा है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला सीमा पार से प्रायोजित था, घटना की जांच के बाद मिले सबूत इसकी गवाही देते हैं।

अब वैश्विक निगरानी संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) के एक बयान से भी इसकी पुष्टि हो गई है। उसने दो टूक कहा है कि पहलगाम आतंकी हमला वित्तीय मदद के बिना संभव नहीं था। इससे पाकिस्तान आतंकियों की धन-बल से मदद करने के मामले में एक बार फिर बेनकाब हुआ है। यह पहली बार है जब राज्य प्रायोजित आतंकवाद की अवधारणा को एफएटीएफ ने वित्तपोषण स्रोत के रूप में स्वीकार किया है।

वित्तीय कार्रवाई कार्यबल का यह बयान इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत ने पहलगाम हमले के बाद पिछले दिनों ‘आपरेशन सिंदूर’ चलाकर सीमा पार कई आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। इसके उपरांत भारत के संसदीय प्रतिनिधिमंडलों ने कई देशों में जाकर पाकिस्तान और आतंकियों के गठजोड़ को उजागर किया। वैश्विक निगरानी संस्था ने भले ही अपने बयान में सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि आतंकियों को कौन वित्तीय मदद मुहैया कराता है।

एफएटीएफ विभिन्न देशों में जांच का दायरा बढ़ाएगा, ताकि इस बात का पता लगाया जा सके किन देशों में आतंकी वित्तपोषण हो रहा है और इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। जांच के बाद इस पर एक रपट भी जारी की जाएगी। अगर रपट तैयार करने में निष्पक्ष व पारदर्शी प्रणाली अपनाई गई तो पाकिस्तान की असलियत फिर जगजाहिर होगी। भारत ने आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनाई है।

भारत अब इस बात पर जोर दे रहा है कि पाकिस्तान का नाम फिर से एफएटीएफ की ‘ग्रे’ सूची में डाला जाए। इस सूची में शामिल होने वाले देशों में आतंकी वित्तपोषण और धनशोधन जैसे मामलों की निगरानी की जाती है। पाकिस्तान को कई बार इस सूची में शामिल किया गया है। मगर, सवाल यह है कि सब कुछ जानते हुए भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे वैश्विक वित्तीय संस्थान पाकिस्तान पर मेहरबान क्यों है?

‘आपरेशन सिंदूर’ के बाद इन दोनों वैश्विक संस्थाओं ने भारत के विरोध के बावजूद पाकिस्तान को बड़ी राशि कर्ज के रूप में मंजूर की है। अगर, वैश्विक संस्थाएं वास्तव में आतंकवाद के खात्मे को लेकर गंभीर हैं, तो उन्हें सबसे पहले आतंकियों की मदद करने वाले देशों को चिह्नित कर उनकी वित्तीय व अन्य सहायता रोकनी होगी। सिर्फ आतंकवाद की निंदा करने से कुछ हासिल नहीं होगा। इसके लिए सही मायने में धरातल पर काम करने की जरूरत है।