इसमें कोई दोराय नहीं कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए बर्बर आतंकी हमले के बाद भारत की ओर से कई मोर्चों पर ठोस कार्रवाई की घोषणाएं हुईं। लेकिन इस तरह के कड़े संदेश देने के संकेतों के बावजूद इस दिशा में कोई स्पष्टता नहीं दिख रही है। पहलगाम में आतंकियों की अंधाधुंध गोलीबारी में छब्बीस लोगों की मौत के जैसे ब्योरे सामने आए, उससे स्वाभाविक ही समूचे देश में व्यापक स्तर पर क्षोभ और गुस्से का वातावरण बना हुआ है, लोग बेहद सदमे में हैं।

हालांकि सरकार ने तीनों सेनाध्यक्षों के साथ बैठक कर और उन्हें खुली छूट देने की बात करके सभी तरफ यह संदेश देने की कोशिश की है कि इस बार वह आतंकवादियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगी। मगर देश भर में लोगों की यह अपेक्षा और मांग है कि सरकार उच्चस्तरीय बैठकें करने के समांतर आतंकियों के साथ-साथ उन्हें संचालित करने वाली शक्तियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की घोषणाओं से आगे बढ़ कर बिल्कुल स्पष्ट कदम उठाती दिखे।

इस लिहाज से देखें तो सरकार आतंकियों को लक्षित करते हुए और पाकिस्तान को भी जिम्मेदार ठहराते हुए जो कार्रवाई कर रही है, उससे निश्चित रूप से एक संदेश जा रहा है, लेकिन पहलगाम हमले की प्रकृति को देखते हुए इस मसले पर एक व्यापक स्पष्टता वक्त का तकाजा है।

यों इतने बड़े हमले के बावजूद दूतावास में कर्मचारियों की संख्या में कटौती, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा पर पाबंदी, सिंधु जल संधि के क्रियान्वयन को निलंबित करने और अब भारतीय वायुक्षेत्र से पाकिस्तानी विमानों की उड़ान पर पाबंदी जैसे कदम उठाने के बावजूद भारत ने आमतौर पर धैर्य का ही परिचय दिया है। हैरानी की बात यह है कि खुद को कठघरे में देखने के बाद पाकिस्तान अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने के बजाय उल्टे सीमा पर बिना किसी वजह बार-बार संघर्ष विराम का उल्लंघन और नाहक ही छिटपुट गोलीबारी कर रहा है। यह एक तरह से भारत को उकसाने की कार्रवाई है। हालांकि इसके बाद भी भारत अभी कोई सीधी कार्रवाई करने को लेकर सावधानी बरत रहा है।

सवाल है कि आखिर पाकिस्तान को सीमा पर इस तरह की हरकत करने की जरूरत क्यों महसूस हो रही है। क्या यह अपने ऊपर लगने वाले आरोपों के बाद बचाव के लिए आक्रामकता का प्रदर्शन नहीं है, ताकि दुनिया का ध्यान आतंकवाद को पालने में उसकी असली भूमिका से भटक सके? यह जगजाहिर हकीकत है कि कई आतंकवादी संगठन भारत में अपनी गतिविधियां संचालित करने के लिए पाकिस्तान स्थित ठिकानों का इस्तेमाल करते हैं। वहां उन्हें आतंक फैलाने की गतिविधियों के प्रशिक्षण से लेकर हथियारों और अन्य संसाधनों की सुविधा मुहैया कराई जाती है।

जब भी भारत की ओर से पाकिस्तान की इस भूमिका पर सवाल उठाए जाते हैं, तब पाकिस्तान बिना किसी हिचक के इससे इनकार कर देता है। जबकि कई वर्ष पहले चीन में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणा-पत्र में भी लश्करे-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के पाकिस्तानी सीमा के भीतर स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करने को लेकर तमाम सवाल उठाए जा चुके हैं। मगर पाकिस्तान के रवैये में कोई फर्क नहीं आया। अब पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत सरकार पर यह जिम्मेदारी है कि वह आतंकी हमलों का हिसाब लेने और पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देने वाले कुछ ठोस कदम उठाए।