दुनिया भर में लगभग सभी देशों में स्कूली बच्चों की सेहत को लेकर बहुस्तरीय कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जरूरी होने पर नियम-कायदे भी लागू किए जाते हैं। इसके बावजूद आज भी बहुत सारे देशों में स्कूल परिसरों और उसके आसपास उपलब्ध खानपान की चीजें विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर कैसा असर डालेंगी, उसे ध्यान में रख कर ठोस नियम लागू नहीं किए जाते।
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की ताजा ‘वैश्विक शिक्षा रपट’ में यह तथ्य उजागर हुआ है कि केवल साठ फीसद देशों के स्कूलों में भोजन और पेय पदार्थों को विनियमित करने वाले कानून और मानक हैं। यानी आज भी ऐसे बहुत सारे स्कूल हैं, जहां बच्चों को खाने-पीने के सुरक्षित सामान नहीं मिलते और करीब चालीस फीसद देशों की सरकारें इसे गंभीरता से नहीं लेतीं। असुरक्षित खाद्य और पेय पदार्थों की बिक्री को प्रतिबंधित करने के उपाय नहीं किए गए हैं।
स्कूल प्रबंधन भी खानपान की ऐसी चीजों की बिक्री की करते हैं अनदेखी
यह छिपा नहीं है कि स्कूल परिसर या उनके आसपास ऐसे डिब्बाबंद खाद्य या पेय पदार्थ आसानी से मिल जाते हैं, जिनके लगातार सेवन की वजह से बच्चों में मोटापा और अन्य प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी होती हैं। इस संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस मानक या कानूनी व्यवस्था न होने की वजह से स्कूल प्रबंधन भी खानपान की ऐसी चीजों की बिक्री की अनदेखी करते हैं। हालांकि इसे लेकर आए दिन सरकार के संबंधित महकमों की ओर से स्कूलों को निर्देश जारी किए जाते हैं कि वे अपने परिसर में या उसके आसपास उन खाद्य या पेय पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाएं जो बच्चों की सेहत के लिए जोखिम भरे हैं।
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विडंबना है कि इस मसले की गंभीरता को जानते-बूझते हुए भी न तो सरकार की ओर अपेक्षित सख्ती बरती गई और न ही स्कूलों ने अपनी ओर से कोई गंभीरता दिखाई। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वैश्विक स्तर पर पैदा हो रहे संघर्ष के हालात और अस्थिरता की वजह से जिस तरह खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ रही हैं, उसके बीच पोषणयुक्त भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करना स्कूली बच्चों की सेहत के साथ शिक्षा के क्रम को जारी रखने और उसे बेहतर बनाने के लिए बहुत जरूरी है।
