आखिरकार वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) की निकासी पर कर लगाने के प्रस्ताव को वापस लेने की घोषणा कर दी। इससे स्वाभाविक ही वेतनभोगी वर्ग ने राहत की सांस ली है। इसके संकेत बजट पेश होने के एक-दो दिन बाद से ही मिलने लगे थे कि सरकार इस मामले में पुनर्विचार कर सकती है। दरअसल, वित्तमंत्री के बजट भाषण में यह प्रस्ताव आते ही इस पर तीखी प्रतिक्रियाओं का सिलसिला शुरू हो गया। कांग्रेस तो लगातार इस प्रस्ताव को सरकार को घेरने का मुद्दा बनाए हुए थी ही, सरकार के सहयोगी दल भी इस पर नाखुश थे। शिवसेना ने तो खुल कर अपनी नाराजगी भी जताई थी। इसके अलावा, तमाम श्रमिक संघों ने भी विरोध जताया और आंदोलन की भी चेतावनी दी थी। बजट का आमतौर पर स्वागत हुआ, पर ईपीएफ संबंधी एक प्रावधान के चलते सरकार को चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही थी।

ऐसे में बुद्धिमानी इसी बात में थी कि प्रस्ताव वापस ले लिया जाए। भविष्य निधि की निकासी पर कर लगाने का कोई औचित्य नहीं था। पीएफ पर कर लगाना दोहरा कराधान होता, क्योंकि पीएफ वेतन से काटा जाता है, जिस पर कर्मचारी पहले ही कर अदा कर चुका होता है। कर नई आय पर लगता है, मगर पीएफ कोई नया आय सृजन नहीं है। विरोध के साथ-साथ सरकार के प्रस्ताव को लेकर गलतफहमी भी काफी फैली। पीएफ की सारी निकासी से लेकर केवल कर्मचारी के अंशदान या केवल अगले वित्तवर्ष से जमा होने वाले अंशदान या उस पर मिलने वाले ब्याज के साठ फीसद पर आय कर लगाने की योजना तक, अनेक धारणाएं बनती-बिगड़ती रहीं, और बहुत-से लोगों के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा था कि वास्तव में सरकार का इरादा क्या है। पर इसमें लोगों का क्या दोष है! गलतफहमी की गुंजाइश सरकार के स्तर से ही शुरू हुई।

वित्तमंत्री के बजट भाषण में आया प्रस्ताव कुछ और कहता था, वर्ष 2016-17 के लिए पेश किया गया वित्त विधेयक कुछ और। भविष्य निधि में कर्मचारी के मूल वेतन (बेसिक सेलरी) और महंगाई भत्ता (डीए) का बारह फीसद अंश जमा होता है और इसी के बराबर अंशदान नियोक्ता की ओर से भी किया जाता है। वित्तमंत्री के बजट भाषण से ऐसा लगता था कि कर्मचारी की कुल पीएफ राशि के साठ फीसद पर कर लगेगा। जबकि प्रस्तावित वित्त विधेयक का एक प्रावधान कहता है कि कर्मचारी के अंशदान के साठ फीसद पर कर देना होगा।

सरकार ने सफाई में यह भी कहा कि अगले वित्तवर्ष से कर्मचारी के अंशदान के ब्याज के साठ फीसद पर कर लगेगा। ये भिन्न-भिन्न बयान भ्रम पैदा करने के अलावा और क्या कर सकते थे? अलबत्ता सरकार के मुताबिक कर-प्रस्ताव के दायरे में केवल वे कर्मचारी थे जिनका मूल वेतन प्रतिमाह पंद्रह हजार रुपए या उससे अधिक है। इसी के आधार पर सरकार यह दावा कर रही थी कि केवल मोटी तनख्वाह पाने वालों पर असर पड़ेगा, बाकी लोग अप्रभावित रहेंगे। पर जब कंपनी-कर घटाया जा रहा हो, बैंकों के बड़े बकाएदारों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई न हो रही हो, कॉरपोरेट जगत को हर साल हजारों करोड़ रुपए की रियायतें दी जा रही हों, तो पीएफ या उस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स की दलील किसी के गले कैसे उतर सकती थी! अच्छा हुआ कि संबंधित प्रस्ताव सरकार ने वापस ले लिया।