आज सूचना माध्यमों के विस्तार के दौर में निश्चित रूप से सोशल मीडिया का अपना महत्त्व है और इसका सकारात्मक इस्तेमाल लोगों को ज्ञान के स्तर पर समृद्ध कर सकता है। लेकिन इसी दौर में यह भी हुआ है कि सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों पर नियंत्रण के ढीले नियमों के चलते इस पर अपनी पहुंच बनाने वालों के बीच इसके दुरुपयोग के मामले भी सामने आने लगे। निजी स्तर पर कुछ लोगों की निराधार बातों से नुकसान की ही स्थिति बन रही थी, लेकिन जब से फेसबुक या ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के मंचों का संगठित रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा है, तब से इसके खतरे बढ़े हैं। हाल के दिनों में फेसबुक, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर गलत सूचनाओं का अंबार देखा गया और इससे व्यापक स्तर पर लोगों के बीच भ्रम फैलने लगे। यही वजह है कि फेसबुक, वाट्सऐप और इंस्टाग्राम जैसे मंचों को नियंत्रित करने के लिए आवाजें उठने लगी थीं। इसी के मद्देनजर सोमवार को फेसबुक की ओर से अलग-अलग राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों के पेज और सामग्रियों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई की है।

खबरों के मुताबिक फेसबुक ने कांग्रेस और भाजपा से जुड़े करीब सात सौ पेजों और अकाउंटों को हटा दिया है, जिन पर फर्जी सूचनाएं प्रसारित की जा रही थीं। इनमें छह सौ सत्तासी पेज और खाते कांग्रेस के आइटी सेल से जुड़े बताए जा रहे हैं, जिनके दो लाख से ज्यादा फॉलोअर थे। इसी तरह भाजपा से जुड़े पंद्रह पेजों और खातों को हटा दिया गया है, जिनके करीब साढ़े छब्बीस लाख फॉलोअर थे। फेसबुक के मुताबिक इन पेजों और खातों के जरिए लगातार ऐसी अप्रामाणिक सूचनाएं, तस्वीरें और ब्योरे प्रसारित किए जा रहे थे, जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। लेकिन इनके फॉलोअरों की बड़ी तादाद को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके बीच ऐसी आधारहीन सूचनाओं का क्या असर हो रहा होगा। इसके अलावा, पाकिस्तान से चलाए जा रहे फेसबुक और इंस्टाग्राम के एक सौ तीन पेज, ग्रुप और खाते भी हटा दिए गए हैं, जिन पर भारत सरकार, भारतीय सेना और नेताओं के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट किए गए थे। यह छिपी बात नहीं है कि सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की संख्या बहुत बड़ी है जो किसी सूचना या ब्योरे की सच्चाई की पुष्टि करना जरूरी नहीं समझते, लेकिन उसके आधार पर अपनी राय बना लेते हैं।

जाहिर है, यह स्थिति राजनीतिक दलों के लिए सुविधाजनक है, क्योंकि इससे ज्यादातर पार्टियों को चुनावों में ज्यादा से ज्यादा वोट और जीत हासिल करने के लिए लोगों की राय को अपने पक्ष में मोड़ने में मदद मिल रही थी। लेकिन क्या यह एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह नहीं है, जिसमें झूठी सूचनाओं के आधार पर लोगों का समर्थन हासिल किया जाता है? मुख्यधारा के समाचार माध्यमों के समांतर जब डिजिटल इंडिया के नारे के साथ सोशल मीडिया का विस्तार हो रहा था, तब यह उम्मीद की गई थी कि लोगों के बीच सूचनाओं और खबरों की सत्यता परखने की प्रवृत्ति को और मजबूती मिलेगी। विडंबना यह है कि ज्यों-ज्यों इस माध्यम तक लोगों की पहुंच का दायरा बढ़ा है, इसका बेजा इस्तेमाल भी बढ़ता गया है। आधुनिक तकनीकी और संचार माध्यमों के उपयोग के मामले में पहले से ही कम परिपक्व समाज में यह स्थिति घातक भी साबित हो सकती है। इसलिए इस माध्यम के व्यापक असर को देखते हुए इसके उपयोग को लेकर भी एक सीमा तय करने की जरूरत है। अभिव्यक्ति की आजादी अधिकार है, लेकिन झूठी सूचनाओं के जरिए लोगों की राय को प्रभावित करने को किसी लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता।