ओड़ीशा में चौबीस वर्ष बाद किसी दूसरे दल की सरकार बनी है। पिछले पांच विधानसभा चुनावों से बीजू जनता दल ही लगातार सत्ता में बनी हुई थी। इस बार भाजपा बीजद से अलग होकर स्वतंत्र चुनाव लड़ी और सत्ता में पहुंच गई। यह निस्संदेह वहां के लोगों की बदलाव की आकांक्षा का ही प्रतिफल है। इस तरह भाजपा को भी पूरब में अपनी जगह बनाने का मौका मिला है। पहली बार ओड़ीशा में उसकी सरकार बनी है।
नए सीएम माझी को बड़ी जिम्मेदारी निभानी होगी
नए मुख्यमंत्री के रूप में आदिवासी समाज के मोहन चरण माझी को राज्य की कमान सौंपी गई है। माझी ने शपथग्रहण से पहले ही आदिवासी समाज के कल्याण का संकल्प लिया था, उम्मीद है, वे इसे पूरा करेंगे। हालांकि उन्हें चौबीस वर्ष लंबे नवीन पटनायक के कार्यकाल के प्रभाव से लोगों को बाहर निकालना एक चुनौती होगी। लोगों में नवीन पटनायक के कामकाज को लेकर कोई खास नाराजगी नहीं थी, इसलिए भी माझी को कुछ अलग करके दिखाना होगा।
माझी के साथ एक अच्छी बात यह है कि केंद्र में भी उनकी पार्टी की सरकार है, इसलिए योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन में किसी अड़चन की गुंजाइश नहीं रहेगी। हालांकि नवीन पटनायक के भी केंद्र सरकार के साथ रिश्ते कभी कड़वे नहीं रहे। नवीन पटनायक ने ओड़ीशा को बीमारू प्रदेशों की श्रेणी से बाहर निकालने, वहां के लोगों की गरीबी दूर करने, शिक्षा और चिकित्सा आदि के क्षेत्र में बेहतरी के लिए जो विकास परिजनाएं चलाईं और प्रदेश का विकास किया, उसकी सभी सराहना करते हैं। मगर विकास परियोजनाओं के चलते नियमगिरी जैसे कुछ इलाकों के आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण को लेकर जो नाराजगी देखी जा रही थी, उन्हें जरूर माझी सरकार से काफी उम्मीदें हैं।
इसके अलावा, एक चुनौती होगी वहां सांप्रदायिक सौहार्द कायम रखने की। नवीन पटनायक सदा एनडीए के साथ रहे, मगर जब कंधमाल में ईसाई मिशनरियों पर हमले हुए तो वे उससे अलग हो गए थे। ओड़िया समाज पर इसका बहुत असर पड़ा था। माझी सरकार उसे कितना सुरक्षित रख पाती है, यह देखने की बात है। अब भी ओड़ीशा की छवि अत्यंत गरीब और पिछड़े प्रदेश की है, उस छवि को माझी कितना बदल पाएंगे, उनकी कामयाबी इसी से आंकी जाएगी।