चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए आयोजित इस बार की राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा यानी नीट को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर उठते सवाल गहरे कर दिए हैं। कुछ केंद्रों पर गलत पर्चा बंटने के बाद से ही विद्यार्थी आरोप लगाते रहे कि प्रश्नपत्र पहले ही बाहर निकल चुके हैं, मगर राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी यानी एनटीए लगातार उस आरोप को खारिज करती रही। फिर नतीजे आए तो उसमें कई विसंगतियां देखी गईं। सड़सठ विद्यार्थियों को पूरे सात सौ बीस अंक मिले थे।
करीब सोलह सौ विद्यार्थियों को कृपांक दिए गए। मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा, तो उसने स्थिति स्पष्ट करने को कहा। मगर फिर भी एनटीए और सरकार की तरफ से तर्क दिया जाता रहा कि परीक्षा का पर्चा बाहर नहीं गया, उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में कुछ त्रुटि हो सकती है। उसके लिए एक जांच समिति गठित कर दी गई। सोलह सौ विद्यार्थियों को दुबारा परीक्षा में बैठने की सहूलियत दी गई। मगर अब सबूत सामने आने लगे हैं कि प्रश्नपत्र पहले ही बाहर हो गया था।
इससे एक बार फिर एनटीए की साख धूमिल हुई है। इस संस्था का गठन ही इस मकसद से किया गया था कि यह पूरी पारदर्शिता के साथ और चौक-चौबंद तरीके से प्रतियोगी तथा प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन करेगी। इससे नकल माफिया पर अंकुश लगेगा। जिस तरह पूरे देश में नकल माफिया का जाल फैल चुका है और वे सख्त से सख्त पहरे में भी सेंधमारी करने में माहिर हो चुके हैं, उससे पार पाने में एनटीए को एक कारगर तंत्र माना जा रहा था। मगर वह भी विफल हो चुका है।
इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के पर्चे फोड़ने में सबसे अधिक कोचिंग संस्थानों का हाथ देखा गया है। राज्य सेवा आयोग की परीक्षाओं तक में वे सेंध लगाते पाए गए हैं। उन पर नकेल कसने का अभी तक कोई पुख्ता तंत्र नहीं बन पाया है। परीक्षाओं में धांधली होनहार विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ और व्यवस्था में औसत तथा अयोग्य लोगों की फौज जमा करते जाने की कोशिश है। बिना दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना मुश्किल है।