शैक्षणिक संस्थानों में नए सत्र के विद्यार्थियों से पुराने छात्रों के परिचय की परंपरा पुरानी है, पर पिछले कुछ वर्षों से यह प्रताड़ना का पर्याय बनती गई है। इस नई परंपरा को रैगिंग कहा जाता है। कई संस्थानों में तो यह इस हद तक क्रूर देखी-पाई गई है कि कई नए विद्यार्थियों ने तंग आकर जान तक दे दी। इसे रोकने के लिए कड़े नियम-कायदे बनाए गए, इसके दोषी पाए जाने वाले विद्यार्थियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाते हैं, जेल तक भेजने का प्रावधान है, उन्हें संस्थान से निलंबित कर दिया जाता है। फिर भी हैरानी की बात है कि परिचय की यह भयावह परिपाटी बंद नहीं हुई है।
विचित्र बात है कि इसे रोकने में देश के कई बड़े शैक्षणिक संस्थान भी गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने चिह्नित किया है कि कई संस्थान रैगिंगरोधी नियमों का कड़ाई से पालन नहीं करते और न उन्होंने इसके व्यावहारिक उपाय कर रखे हैं। इसे लेकर यूजीसी ने चार आइआइटी, तीन आइआइएम सहित देश भर के नवासी शैक्षणिक संस्थानों को नोटिस जारी किया है। इनमें सत्रह राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान हैं। यूजीसी ने कहा है कि अगर इन संस्थानों ने तीस दिन के भीतर रैगिंगरोधी मानदंडों का अनुपालन नहीं किया तो उनकी वित्तीय सहायता रोक दी जाएगी, उनकी मान्यता रद्द करने पर भी विचार किया जा सकता है।
संस्थानों के ढीले-ढाले रवैए के चलते विद्यार्थियों से होती है रैगिंग
दरअसल, रैगिंग की वजह से विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क को पहुंचने वाले आघात के मद्देनजर यूजीसी विनियमन के तहत नियम बनाया गया कि सभी शैक्षणिक संस्थान दाखिले के समय सभी विद्यार्थियों और उनके माता-पिता से रैगिंग में हिस्सा न लेने का शपथपत्र और हलफनामा जमा कराएंगे। मगर यूजीसी ने जांच में पाया है कि इस नियम को बने करीब पंद्रह वर्ष बीत जाने के बावजूद सभी संस्थान इसका ठीक से अनुपालन नहीं करते। यही नहीं, रैगिंग पर निगरानी रखने और उसे रोकने के लिए उनमें समुचित व्यवस्था भी नहीं की गई है।
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समझना मुश्किल नहीं है कि संस्थानों के इस ढीले-ढाले रवैए के चलते विद्यार्थियों में रैगिंग करने का साहस बनता है। यों तो हर संस्थान में बड़ी-बड़ी पट्टिकाएं लगा कर घोषित किया जाता है कि उनके परिसर में रैगिंग एक दंडनीय अपराध है, पर हकीकत यह है कि उनमें रैगिंग का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है। उन पर ध्यान तब जाता है, जब कोई बड़ी घटना घट जाती है। सवाल है कि किसी संस्थान को रैगिंग जैसी क्रूर परंपरा को बंद कराने में ढिलाई क्यों बरतनी चाहिए।
पुराने विद्यार्थियों का नए विद्यार्थियों से परिचय, मेलजोल कोई बुरी बात नहीं है। मगर इसके नाम पर किसी का मजाक उड़ाना, उसे प्रताड़ित करना, इस कदर भयभीत कर देना या उसमें हीन भावना भर देना कि वह मानसिक त्रास से अवसाद में चला जाए या खुदकुशी जैसा कदम उठा ले, तो इसे किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता।
पुरानी परिपाटी तो नए विद्यार्थियों के स्वागत समारोह की रही है, उसने रैगिंग का विकृत रूप कैसे ले लिया, कहना मुश्किल है। मगर कोई शैक्षणिक संस्थान खुद इस विकृत रूप को कैसे बने रहने दे सकता है। क्या उन संस्थानों को इस बात की जानकारी नहीं कि रैगिंग के दौरान क्या होता है और उसका नए विद्यार्थियों पर कैसा असर पड़ता है। फिर दाखिले के वक्त उनसे यह शपथ-पत्र लेने में क्यों गुरेज होनी चाहिए कि वे रैगिंग में हिस्सा नहीं लेंगे।