एक व्यापक उथल-पुथल और अराजकता के बाद नेपाल अब धीरे-धीरे पटरी पर लौटता दिखने लगा है। ‘जेन-जी’ कहे वाले युवाओं के हिंसक प्रदर्शनों का सिलसिला अब रुक गया है और पूर्व सरकार के इस्तीफे के बाद नए शासन ने आकार लेना शुरू कर दिया है। मगर इस बीच सबसे ज्यादा फिक्र इस बात को लेकर जताई जा रही है कि क्या नेपाल में लोकतंत्र अपने ठोस रूप में मजबूत हो पाएगा।
फिलहाल नेपाल की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं सुशीला कार्की को वहां की पहली अंतरिम महिला प्रधानमंत्री बनाया गया है। चूंकि नई सरकार का नेतृत्व करने के लिए सुशीला कार्की के नाम पर प्रदर्शनकारी समूहों के बीच आम सहमति बन सकी, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि जिन मुद्दों पर नेपाल में इतना बड़ा विरोध खड़ा हुआ, सबसे पहले उनके मद्देनजर ही नई सरकार समस्याओं के हल की तलाश करेगी।
नेपाल में राजशाही के खात्मे के बाद आई थी लोकतंत्र की बयार
दरअसल, नेपाल में राजशाही के खात्मे के बाद लोकतंत्र की जो बयार आई थी, उसमें जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के बजाय शासन में भ्रष्टाचार और अन्य वंचनाओं को दूर करने के लिए कुछ भी ऐसा नहीं किया गया, जिससे लोगों के भीतर भरोसा पैदा हो पाता। राजनीतिक अस्थिरता में एक तरह की निरंतरता कायम रहने के बीच यह बेवजह नहीं है कि धीरे-धीरे जनता के बीच असंतोष ने जड़ें जमाना शुरू कर दिया।
अब नेपाल एक बार फिर नए दौर से गुजर रहा है और यह देखने की बात होगी कि जिन उम्मीदों के साथ वहां की जनता ने बदलाव की राह तैयार करने के लिए सुशीला कार्की के हाथ में कमान दी है, वे कितनी पूरी हो पाती हैं। एक बड़ी चुनौती भारत के सामने होगी कि पिछले कुछ वर्षों में नेपाल का जैसा रवैया रहा, नाहक प्रतिद्वंद्विता पालने की कोशिश की गई, उसमें वहां नई सरकार के आने के बाद क्या बदलाव आता है।
भारत के संबंधों के एक नए अध्याय की शुरूआत
यों बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल करने वाली सुशीला कार्की ने भारत को लेकर जैसी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, उससे नेपाल के साथ भारत के संबंधों के एक नए अध्याय की शुरूआत की उम्मीद की जा सकती है। मगर भारत के लिए यह एक संवेदनशील अवसर है कि वह नेपाल से संबंधों के मामले में अपने हित में नई रणनीति बनाए और उसी लिहाज से कूटनीतिक पहल करे।