यह आशंका पहले से थी कि नेपाल में भारी बरसात का बिहार पर भी व्यापक असर पड़ सकता है। अब नेपाल में बांधों से बड़े पैमाने पर पानी छोड़े जाने के बाद बिहार में जैसी तबाही मची है, उससे गहरी चिंता पैदा हो गई है। बिहार के कई जिलों की नदियों में उफान आ गया है और अब बाढ़ का पानी जितने बड़े दायरे में फैल गया है, उसे देखते हुए राज्य में अतीत में आई बाढ़ की त्रासद स्मृतियां ताजा हो गई हैं। गौरतलब है कि नेपाल में इस बार की बरसात का दबाव इतना ज्यादा है कि वहां कोसी बांध के कई दरवाजे खोलने की नौबत आ गई।

नतीजतन, बिहार में कई नदियों के तटबंध टूट गए और अब उन्नीस जिलों में बाढ़ का पानी का फैल चुका है, सैकड़ों गांवों में पानी भर गया है और दस लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इससे पहले 2008 में समूचे कोसी क्षेत्र में भयावह बाढ़ आई थी, जिससे हुई व्यापक तबाही को इस बार याद किया जा रहा है, लेकिन बताया जा रहा है कि 1967 के बाद कोसी में और 2003 के बाद गंडक नदी में इतना पानी पहली बार आया है।

सात दशक पहले बाढ़ नियत्रण के लिए कोसी नदी परियोजना की हुई थी शुरुआत

विडंबना यह है कि जब भी नेपाल में बारिश और बाढ़ अधिक होती है, तो इसकी मार अनिवार्य रूप से बिहार पर पड़ती है। अगर बांधों के दरवाजे न खोले जाएं, तो बांध के ही टूटने का खतरा बढ़ जाएगा, जिसके बाद की तबाही की कल्पना भी डरा देती है। करीब सात दशक पहले भारत और नेपाल के बीच बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए कोसी नदी परियोजना की शुरुआत की गई, मगर अब भी यह त्रासदी कायम है।

संपादकीय: भारत ने पश्चिमी एशियाई देशों को भेजा अमन का पैगाम, इजरायली पीएम से मोदी ने की बात

बरसात के मौसम में उफन कर जानमाल को व्यापक नुकसान पहुंचाने वाली नदियों को तटबंध बना कर नियंत्रित करने की कोशिश की गई, लेकिन बाढ़ के पानी के दबाव में जब ये तटबंध टूटते हैं, तब कई बार सामने पड़ने वाली समूची बस्तियां बह जाती हैं। सवाल है कि कई दशकों से कायम इस समस्या के समाधान के लिए सरकारों की ओर से कब कोई ऐसी योजना सामने आएगी, जिससे इतने बड़े इलाके में थोड़ी राहत महसूस की जा सके।