इस साल अच्छे मानसून ने एक ओर जहां खेती-किसानी के लिए काफी उम्मीदें जगार्इं, वहीं बारिश के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों से व्यापक नुकसान की जैसी खबरें आ रही हैं, वे चिंता पैदा करती हैं। देश के कई राज्यों में भारी बारिश के कारण आई बाढ़ ने जनजीवन को पूरी तरह ठप कर दिया और बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि हुई है। दरअसल, इस साल की बरसात ने एक प्राकृतिक आपदा का रूप ले लिया है। अब तक उत्तर प्रदेश, बिहार और यहां तक कि केरल में भी बाढ़ से कई लोग जान गंवा चुके हैं। देश भर से अब तक कम से कम पौने आठ सौ लोगों के मारे जाने की खबरें आ चुकी हैं। लेकिन मैदानी इलाकों की बरसात के मुकाबले पहाड़ी क्षेत्रों में इससे उपजे खतरे की प्रकृति और स्वरूप अलग होता है और इससे निपटना भी चुनौतियों से भरा हुआ। खासतौर पर अचानक बादलों के फटने की स्थिति में लोग चाह कर भी बहुत कुछ नहीं कर पाते। इन्हीं वजहों से हिमाचल प्रदेश में इस साल की बारिश में अब तक सोलह लोगों के मारे जाने की खबरें आ चुकी हैं। भूस्खलन और जमीन धंसने की घटनाओं से राज्य के अधिकांश छोटे-बड़े सड़क मार्ग बंद हो गए हैं। हालात के मद्देनजर फिलहाल सभी स्कूलों को भी बंद रखने का फैसला किया गया है।

आमतौर पर पहाड़ी इलाकों की बरसात के बारे में माना जाता है कि तीखी ढलान होने की वजह पानी का निकास आसानी से हो जाता है, इसलिए बाढ़ की आशंका कम पैदा होती है। लेकिन सच यह है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान उन क्षेत्रों में अनियोजित विकास ने शहरों को संकरा और घनी आबादी वाला बना दिया है। नदियों के पानी के प्रवाह पर भी इसका असर पड़ा है और यही वजह है कि ज्यादा बारिश में नदियां उफन जाती हैं और रिहाइशी इलाकों को भी तबाह करती हैं। इसके अलावा, अंधाधुंध तरीके से पेड़ों की कटाई ने पहाड़ों की मजबूती पर बुरा असर डाला है और औसत से ज्यादा बारिश होने पर भूस्खलन जैसी घटनाएं लगातार देखने में आ रही हैं। हिमाचल प्रदेश का आकर्षण और उसकी अर्थव्यवस्था का आधार पर्यटन है और हर वक्त हजारों पर्यटक वहां मौजूद होते हैं। लेकिन इस साल जिस तरह बाढ़ और पहाड़ों में भूस्खलन की आशंका खड़ी हो गई है, उसे देखते हुए पर्यटकों से हिमाचल की यात्रा स्थगित करने की सलाह जारी करनी पड़ी है।

पहाड़ी इलाकों में ज्यादा बड़ी तबाही बादल फटने से देखी गई है। बाढ़ नदियों से शुरू होकर उफनने के बाद मैदानी इलाकों में फैलती है और इस तरह उसके रास्ते और इलाके के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन बादल फटने की जगह निश्चित नहीं होती। अगर अचानक भारी बारिश के पानी की निर्बाध निकासी की व्यवस्था की जाए और वृक्षारोपण को तेजी से बढ़ावा दिया जाए तो बारिश के मौसम में बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने जैसी आपदाओं का सामना करने में थोड़ी आसानी हो सकती है। लेकिन विडंबना यह है कि बरसात से उपजी आफत के उदाहरण सामने होने के बावजूद सरकारों की नींद तब तक नहीं खुलती है, जब तक इस तरह का नया संकट सामने खड़ा न हो जाए। सरकारों के इसी रवैए की वजह से जान-माल के नुकसान का दायरा व्यापक हो जाता है। मौसम का अपना एक नियत चक्र होता है और आपदाओं को रोका नहीं जा सकता। लेकिन अचानक आई आपदा से निपटने के पूर्व इंतजाम जरूर किए जा सकते हैं, ताकि होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।