दुनिया अमीर और गरीब के खानों में बंटी हुई है। अमीर देशों का गरीब देशों पर किसी न किसी रूप में या तो दबदबा बना रहता है या फिर वे उन्हें अलग-थलग किए रहते हैं। ऐसे में महाशक्तियों के रूप में चिह्नित देशों को चुनौती देने की कोशिशें होती रहती हैं। वैश्विक दक्षिण देशों की एकजुटता उसी की एक कड़ी है।

इन देशों के दूसरे सम्मेलन से एक बार फिर यह उम्मीद जगी है कि वे अमीर कहे जाने वाले देशों के समांतर अपनी एक ताकतवर व्यवस्था कायम कर सकते हैं। जी-20 सम्मेलन के बाद भारत ने वैश्विक दक्षिण की आवाज नामक इस सम्मेलन की अगुआई की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने फिर से वैश्विक दक्षिण के देशों को एकजुट होकर नई वैश्विक चुनौतियों का सामना करने की अपील की।

पश्चिम एशिया में जिस तरह की उथल-पुथल चल रही है, उसमें वैश्विक दक्षिण के देशों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। वैश्विक दक्षिण के समूह में वे देश शामिल हैं, जो शीतयुद्ध के बाद अलग-थलग पड़ गए थे। वे औद्योगिक क्रांति से दूर रह गए थे और प्राय: पूंजीवादी तथा साम्यवादी देशों से उनका संघर्ष बना हुआ था। इसमें ज्यादातर एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश हैं।

वैश्विक उत्तर में वे देश हैं, जिन्होंने औद्योगिक क्रांति के जरिए काफी तरक्की कर ली और अब वे दुनिया के बाजारों में अपनी पैठ बनाए हुए हैं। उनमें अमेरिका, यूरोप, कनाडा, रूस, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश हैं। आबादी के लिहाज से वैश्विक दक्षिण के देश बड़ी श्रमशक्ति और उपभोक्ता बाजार हैं। अगर वे एकजुट होकर संपन्न देशों पर से अपनी निर्भरता खत्म कर लेते हैं, तो विश्व अर्थव्यवस्था की सूरत काफी कुछ बदल सकती है।

ऐसे में भारत इन देशों को एकजुट करके न केवल अपने लिए एक बड़े बाजार का निर्माण करना चाहता है, बल्कि चीन को चुनौती भी देने की कोशिश कर रहा है। वैश्विक दक्षिण के देश विकासशील और अविकसित की श्रेणी में गिने जाते हैं। उनमें आर्थिक असमानता बहुत है। इसका लाभ उठा कर चीन इन देशों में अवसंरचना के विकास के जरिए अपनी पैठ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ परियोजना उसने इसी महत्त्वाकांक्षा से शुरू की थी।

भारत अभी विकसित देशों की श्रेणी में तो नहीं गिना जाता, मगर वह विकासशील की श्रेणी में भी नहीं रहा। वह तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है और उसकी चीन से प्रतियोगिता रहती है। इस तरह भारत वैश्विक दक्षिण देशों की एकजुटता के जरिए अपने पड़ोस में बढ़ती चीन की गतिविधियों पर अंकुश लगाने में कामयाब हो सकता है।

इस बार के जी-20 सम्मेलन में भी अध्यक्ष के रूप में भारत ने वैश्विक दक्षिण पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया था। भारत की पहल पर ही अफ्रीकी समूह को भी जी-20 का सदस्य बनाया गया था। इस तरह भारत की पहल पर वैश्विक दक्षिण के देश वैश्विक उत्तर के देशों वाले मंचों पर भी उपस्थिति बनाने लगे हैं। आसियान और ब्रिक्स समूहों में उनकी शिरकत है। ये देश स्वाभाविक रूप से भारत पर भरोसा करते हैं।

पिछले कुछ समय से जिस तरह रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-हमास संघर्ष के चलते वैश्विक स्थितियां प्रभावित हुई हैं। आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है और आर्थिक मंदी के इस दौर में वैश्विक दक्षिण के देशों के सामने चुनौतियां बढ़ी हैं, उसमें नए विकल्पों की तलाश के लिए भारत की अपील समय की मांग है।