मुंबई हमले की साजिश रचने वालों में शामिल तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को अमेरिकी अदालत से मिली मंजूरी भारत की बड़ी कामयाबी कही जा सकती है। तहव्वुर को भारत लाकर पूछताछ से कई अहम खुलासे होंगे और इस तरह उस हमले के अन्य दोषियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी। उस घटना को करीब पंद्रह साल हो गए। उसमें एक सौ छियासठ लोग मारे गए और अनेक घायल हो गए थे। इस बात को लेकर अक्सर असंतोष प्रकट किया जाता है कि मुंबई हमले के दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है।

हालांकि उस हमले से जुड़े सारे तथ्य लगभग साफ हैं, मगर पाकिस्तान सरकार शुरू से ही इंकार करती रही है कि उसकी जमीन से इसकी साजिश को अंजाम नहीं दिया गया। यहां तक कि अजमल कसाब को भी उसने अपना नागरिक नहीं माना था। तहव्वुर राणा पाकिस्तानी मूल का है और उसने डेविड कोलमैन हेडली के साथ मिल कर मुंबई हमले से संबंधित जानकारियां पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को पहुंचाई थीं। मुंबई हमले से कुछ दिन पहले वह खुद भी आकर उन जगहों को देख गया था, जहां हमले हुए। इस मामले की पुख्ता जानकारी अमेरिका सरकार को उपलब्ध कराई गई, तो तहव्वुर को गिरफ्तार किया गया। करीब तीन साल से वह अमेरिका की जेल में बंद है।

हालांकि मुंबई हमले से जुड़े तमाम तथ्य अब उजागर हैं और वे सारे दस्तावेज पाकिस्तान को सौंपे भी जा चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अनेक मौकों पर इसका खुलासा किया जा चुका है, मगर तहव्वुर से पूछताछ के बाद इन बातों की और पुष्टि हो सकेगी कि किस तरह लश्कर और पाकिस्तानी खुफिया एजंसी आइएसआइ भारत में आतंकी साजिशों को अंजाम देते रहे हैं। तहव्वुर अमेरिकी अदालत के सामने अपनी संलिप्तता स्वीकार कर चुका है, अब भारतीय अदालत में पूछताछ के बाद उसकी सजा तय हो सकेगी।

मुंबई हमला भारत पर हुए अब तक के सारे आतंकी हमलों में सबसे खौफनाक था। हमलावरों ने पाकिस्तान से मिल रहे निर्देशों के आधार पर बेखौफ घूम-घूम कर हमले किए थे। वह दहशत का मंजर जिन लोगों ने देखा था, वे उसके बारे में सोच कर अब भी सिहर उठते हैं। इसलिए उस जघन्यतम कृत्य की कठोर से कठोर सजा की मांग की जाती रही है। उस हमले से जुड़े हर शख्स को सजा की अपेक्षा की जाती है। इस तरह तहव्वुर के प्रत्यर्पण से स्वाभाविक ही पीड़ितों ने राहत की सांस ली है।

आतंकी साजिशों को अंजाम देने वाले अक्सर दूसरे देशों में पनाह लेकर महफूज महसूस करते हैं। तहव्वुर भी लगभग निश्चिंत था कि उस तक कानून के हाथ नहीं पहुंचेंगे, इसलिए कि पाकिस्तान सरकार खुद इस मामले में किसी तरह का सहयोग नहीं कर रही थी। दूसरे, वह अमेरिका में जा बसा था। मगर प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक अगर सरकारें संजीदगी से पहल करें, तो इस तरह के अपराधियों को पकड़ लाना मुश्किल काम नहीं। इसमें देर इसलिए लगी कि कई सरकारों, जांच एजंसियों और अदालतों को अपने-अपने स्तर पर काम करना था।

देर से ही सही, तहव्वुर के प्रत्यर्पण से आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिबद्धता को बल मिला है। इससे अंतरराष्ट्रीय मंचों को एक और संदेश जाएगा कि पाकिस्तान किस तरह अपनी जमीन से ऐसी साजिशों को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहा। इस तरह जो देश पाकिस्तान के प्रति नरम रुख रखते हैं, उन्हें भी इस पर फिर से विचार करने के लिए विवश किया जा सकता है।