जिस दौर में वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाओं में काफी उथल-पुथल और चिंताजनक हालात बने हुए हैं, उसमें मंगलवार को पेश बजट ने एक तरह से सबका खयाल रखने का आश्वासन दिया है। बजट के कुछ अहम बिंदुओं को देखते हुए यह साफ लगता है कि तीसरी बार सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की प्राथमिकताओं में अब शायद कुछ बदलाव आया है।

वित्त मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा कि शिक्षा और रोजगार के लिए बजट में 1.48 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यानी सरकार पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में चुनावी मुद्दा बने, लेकिन प्रकारांतर से उपेक्षित सवालों की सुध लेती दिखती है। देश में बेरोजगारी की चुनौतियों से जूझने के लिए तीन नई योजनाओं की घोषणा की गई है, जिसमें अगले पांच वर्षों के लिए दो हजार करोड़ रुपए की राशि तय की गई है। औपचारिक क्षेत्र में पहली बार नौकरी हासिल करने वालों को सरकार उनके पहले महीने के वेतन पर अनुदान के रूप में पंद्रह हजार रुपए तक की अतिरिक्त राशि देगी।

इसके अलावा, एक करोड़ युवाओं को पांच वर्ष में शीर्ष पांच सौ कंपनियों में प्रशिक्षुता या इंटर्नशिप का मौका देने की बात की गई है, जिसके तहत युवाओं को पांच हजार रुपए मासिक भत्ता दिया जाएगा। जाहिर है, लंबे समय के बाद ऐसा लगता है कि बेरोजगारी की समस्या की गंभीरता को स्वीकार करने की कोशिश की गई है। आमतौर पर इस पर सबकी नजर रहती है कि बजट में मध्यवर्ग के लिए क्या कोई राहत है। इस लिहाज से देखें तो सरकार ने नई कर व्यवस्था की दरों में जो बदलाव किया है, उससे लोगों के साढ़े सत्रह हजार रुपए तक बच सकते हैं और अब तीन लाख रुपए की आय तक कोई आयकर नहीं देना होगा।

अप्रत्यक्ष कर की दरों में बदलाव के बाद अब कैंसर की कुछ दवाएं, मोबाइल फोन, सोना-चांदी के दाम में कमी आने की संभावना है। मगर आम लोग जिस महंगाई से जूझ रहे हैं, उससे कितनी राहत मिलेगी, इस मसले पर कोई स्पष्टता नहीं है। हालांकि कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने के अलावा प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के तहत किए गए नए प्रावधानों से मध्यवर्ग को लाभ मिल सकता है।

इसी तरह, कर ढांचे के नए स्वरूप से ऐसा लगता है कि सरकार की मंशा लोगों को पैसा बचाने के बजाय खर्च करने का विकल्प चुनने की ओर प्रवृत्त करने की है। अल्पकालिक पूंजीगत लाभ और दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के नियमों में हुए बदलाव का असर इस रूप में सामने आया कि बजट भाषण के दौरान ही शेयर बाजार धड़ाम से गिर गए। एक उम्मीद यह थी कि पिछले कुछ समय से रेल यात्रा के समूचे तंत्र को लेकर जितने बड़े पैमाने पर सवाल उठे थे, तो सरकार बजट में शायद इस पर ध्यान दे। मगर विचित्र यह है कि रेलवे क्षेत्र के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई।

इस बजट में खासतौर पर बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए जिस तरह अलग से बड़े एलान किए गए हैं, उसने सबका ध्यान खींचा है। खासतौर पर बिहार के लिए छब्बीस हजार करोड़ की बड़ी राशि देने की घोषणा की गई। यह सभी जानते हैं कि मौजूदा सरकार के गठन में जद(एकी), और तेलगु देसम की क्या भूमिका रही है। यही वजह है कि विपक्ष ने इसे ‘सरकार बचाओ’ बजट कहा है। बहरहाल, सरकार अगर इसे उम्मीदों का बजट बता रही है, तो आने वाले वक्त में ये आश्वासन कसौटी पर रहेंगे।