हरियाणा में इस वर्ष के शुरुआती तीन महीनों में ही चार हजार एक सौ लोगों के लापता होने की खबर चिंताजनक है। इससे राज्य के सुरक्षा इंतजाम और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर भी सवाल उठते हैं। एक राज्य में रोजाना औसतन पैंतालीस लोगों का गुम हो जाना और उनका फिर कभी न मिलना एक ऐसी त्रासदी है, जो न केवल सरकारी तंत्र की नाकामी को दर्शाता, बल्कि एक ऐसी जटिल समस्या का सूचक भी है, जो कई स्तरों पर प्रभावित परिवारों और लोगों पर गहरा असर डाल रहा है।

गौरतलब है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के गुम हो जाने के अलावा एक हजार से ज्यादा लोगों के अपहरण के मामले भी सामने आए हैं। ये आंकड़े किसी भी जिम्मेदार सरकार को विचलित करने वाले होने चाहिए। यही वजह है कि एक रपट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने राज्य की पुलिस को नोटिस जारी कर आठ हफ्ते के भीतर इस मसले पर जवाब मांगा है। आयोग ने सख्त टिप्पणी की है कि ये आंकड़े सार्वजनिक सुरक्षा तंत्र के विफल होने की गंभीर स्थिति को दर्शाते हैं।

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यह समझना मुश्किल नहीं है कि जो लोग गुम हो जाते हैं, उनके परिवारों को किस गंभीर मानसिक आघात का सामना करना पड़ता होगा। खासकर तब, जब उन्हें यह भी नहीं पता होता कि उनके जो प्रियजन गुम हो गए, वे जीवित हैं या नहीं। मानवाधिकार आयोग की टिप्पणी बिल्कुल सही है कि यह गहन मानवीय पीड़ा और संकट की स्थिति को दर्शाता है।

यह छिपा नहीं है कि लापता हो जाने वाली महिलाएं, बच्चे और आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लोग मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी, यौन शोषण, देह व्यापार और अवैध अंग व्यापार जैसी आपराधिक गतिविधियों का शिकार हो जाते हैं। जाहिर है, यह सिर्फ बड़ी संख्या में रोजाना बच्चों, महिलाओं और अन्य लोगों के लापता होने का मामला नहीं, बल्कि इसका सिरा एक व्यापक और संगठित अपराध-तंत्र से जुड़ा दिखता है। विचित्र है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग लापता हो रहे हैं और हरियाणा सरकार और प्रशासन की ओर से कोई प्रभावी कार्रवाई होती नहीं दिखती।