आमतौर पर दिल्ली और उससे जुड़े इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था देश के दूसरे शहरों की तुलना में अधिक चाक-चौबंद मानी जाती है। मगर पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह वहां आपराधिक घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, उससे पुलिस की नाकामी ही जाहिर होती है। अधिक अपराध वहीं होते हैं, जहां पुलिस का खौफ खत्म हो जाता है।

मंगलवार को जिस तरह मामूली कहा-सुनी में चार बदमाशों ने दो लोगों को गोली मार दी, बुधवार को गाजियाबाद के अदालत परिसर में एक वकील को उसके कमरे में घुस कर दो लोगों ने गोली मार दी, उससे एक बार फिर यही रेखांकित हुआ है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बदमाशों को कानून-व्यवस्था का कोई खौफ नहीं रह गया है।

पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ी हैं, जिनमें अपराधी दिन-दहाड़े वारदात को अंजाम देते और फिर बिना किसी भय के निकल भागते हैं। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किए गए तमाम इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं। दिल्ली के भजनपुरा में जिन दो लोगों को गोली मार दी गई, उसमें अपराधियों की गिरफ्तारी के बाद हुए खुलासे और चिंता पैदा करते हैं। उसमें गोली चलाने वाले चारों लड़के अठारह साल के आसपास की उम्र के हैं।

पुलिस का कहना है कि घटना एक संकरी गली में दोनों तरफ से आ रहे स्कूटरों के आमने-सामने आ जाने पर कहासुनी होने के बाद घटी थी। जिन लड़कों ने गोली चलाई, दरअसल उनका एक संगठित गिरोह है। उस गिरोह के सरगना की उम्र अभी अठारह साल है और उनके साथ एक इससे कम उम्र का लड़का भी था। ये लड़के इस कदर बेखौफ हैं कि उसके सरगना ने अपने इंस्टाग्राम पर दोनों हाथों में पिस्तौल लेकर तस्वीर साझा की है।

कई तस्वीरों में वह पिस्तौल चलाता देखा जा रहा है। एक तरह से वह सिर पर कफन बांध कर अपराध की दुनिया में उतरा है। बताया जा रहा है कि इससे पहले भी चार मामलों में वह आरोपी है। पुलिस के अनुसार बदमाशों का यह इस तरह का अकेला गिरोह नहीं है। ऐसे कई गिरोह दिल्ली में सक्रिय हैं, जिनमें अठारह साल और इससे कम उम्र के लड़के शामिल हैं।

हैरानी की बात है कि जो अपराधी सोशल मीडिया पर पिस्तौल के साथ तस्वीरें साझा करते हैं, ऐलानिया अपराध की बात कबूल करते हैं, उन पर भी पुलिस का शिकंजा कैसे नहीं कस पाता। समझना मुश्किल नहीं है कि पुलिस की इसी शिथिलता की वजह से ऐसे बदमाशों का मनोबल बढ़ता गया है।

अपराधियों में कानून का भय तब पैदा होता है, जब साजिशों को अंजाम देने से पहले ही पुलिस का हाथ उनकी गर्दन पर पहुंच जाता है। मगर अत्याधुनिक सूचना तकनीक से लैस होने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की पुलिस तो घटना के कई दिन बाद तक अपराधियों की तलाश में भटकती देखी जाती है।

उनसे घटना के पहले उन्हें दबोच लेने की उम्मीद करना दूर की बात है। फिर रसूखदार अपराधियों पर उसकी मेहरबानी भी छिपी बात नहीं है। ऐसी स्थिति में भला अपराधियों पर नकेल कसना कहां तक संभव हो सकता है। चिंता की बात है कि अब नाबालिग लड़के भी अपराध को पेशा समझने लगे हैं। अदालत परिसर तक में किसी की हत्या कर देने में बदमाशों के हाथ नहीं कांपते। ऐसे वातावरण में भला दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सुरक्षा के दावे कितने पुख्ता कहे जा सकते हैं।