किसी भी हादसे का सबक यही होना चाहिए कि वैसी लापरवाहियां न बरती जाएं। हर तरह के सुरक्षात्मक इंतजाम किए जाएं, ताकि दोबारा वैसी त्रासदी न हो। मगर विडंबना है कि एक जैसी दुर्घटनाएं बार-बार हो जाती हैं और बहुस्तरीय लापरवाही कायम रहती है। करीब पांच महीने पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक धार्मिक आयोजन में भारी संख्या में जमा लोगों के बीच भगदड़ मच गई थी। उस घटना की भयावहता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उसमें एक सौ तेईस लोगों की जान चली गई और डेढ़ सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।

पांच महीने पहले हाथरस भगदड़ हादसे में 23 की मौत और 150 घायल हुए थे

ऐसा नहीं कि वह कोई अकेली घटना थी, जिसमें व्यवस्था में लापरवाही की वजह से लोगों की मौत हुई, बल्कि जब-तब उस तरह के आयोजन होते रहते हैं और उनमें कई तरह की लापरवाहियां हादसे को न्योता देती रहती हैं। जबकि आयोजकों और प्रशासन को यह अंदाजा रहता है कि अगर बड़ी संख्या में लोग किसी जगह जमा हो रहे हैं, तो वहां हादसे की आशंका होती है।

मेरठ में कथावाचक का प्रवचन सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोग जुटे थे

गौरतलब है कि शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक कथावाचक का प्रवचन सुनने एक लाख से ज्यादा लोग जमा हो गए। खबरों के मुताबिक, आयोजन स्थल में प्रवेश द्वार पर फैली अव्यवस्था की वजह से कई महिलाएं गिर गईं। सुर्खियों में आए एक वीडियो में भी कुछ महिलाएं भीड़ में गिरती दिखीं, लेकिन पुलिस का बयान आया कि वहां भगदड़ जैसी स्थिति नहीं बनी। गनीमत थी कि कुछ लोगों के तत्काल सक्रिय होने की वजह से अफरातफरी की स्थिति कोई भगदड़ या बड़े हादसे में तब्दील होने से बच गई, वरना जितनी संख्या में लोग वहां पहुंचे थे, उसमें नतीजों का बस अंदाजा लगाया जा सकता है।

सच यह है कि पहले हुए ऐसे हादसों के बावजूद, आयोजकों की लापरवाही और प्रशासन की अनदेखी के चलते ऐसी स्थिति बनी रहती है। ऐसे में कभी भगदड़ के कारण लोगों की मौत हो जाती है, तो उसके लिए आयोजकों को जिम्मेदार ठहरा कर असली कसूरवारों पर शायद ही कभी सख्त कार्रवाई होती है। नतीजतन, आस्था के नाम पर लाखों लोगों के जुटान के बावजूद सुरक्षा इंतजामों का सवाल आमतौर पर हाशिये पर रहता है।