पर्यावरण और ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण क्षेत्र में काम करने वाली संस्था टेरी यानी द एनर्जी ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने जिस तरह यौन-उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे आरके पचौरी की कार्यकारी उपाध्यक्ष पद पर वापसी का रास्ता बनाया, उसके बाद स्वाभाविक ही ये सवाल उठे हैं कि संस्थान अपनी एक पूर्व कर्मचारी के साथ हुई घटना के मामले में आखिर किसके पक्ष में खड़ा है। गौरतलब है कि पिछले साल वहां की एक महिला कर्मचारी ने टेरी के तत्कालीन अध्यक्ष आरके पचौरी पर यौन-उत्पीड़न का आरोप लगाया था। संस्थान की आंतरिक समिति ने अपनी जांच में पीड़िता की शिकायत को सही पाया और पचौरी को दोषी ठहराया था।

लेकिन अदालत में मुकदमा होने के बावजूद पचौरी ने जिस तरह की बहानेबाजियों से अपने विदेश जाने से लेकर संस्थान में जाने-आने से संबंधित सुविधाएं हासिल कर लीं, उससे यही लगता है कि संस्थान उनके पक्ष में और एक तरह से पीड़िता के खिलाफ काम कर रहा है। वरना क्या वजह है कि यौन-उत्पीड़न का यह मामला अदालत में है, फैसला आना बाकी है, लेकिन टेरी ने आरके पचौरी की संस्थान में आधिकारिक रूप से वापसी के लिए शीर्ष स्तर का एक नया पद सृजित कर दिया! संबंधित मामले में जितने तथ्य मौजूद हैं, उनके मद्देनजर आरके पचौरी को पहले खुद को निर्दोष साबित करना चाहिए था। लेकिन न केवल वे इस मामले में अदालत से बाहर ‘सुलह’ करने की कोशिश में लगे रहे, बल्कि टेरी भी उनके पक्ष में खड़ा है। खबरों के मुताबिक टेरी के एक अधिकारी ने पीड़िता के एक दोस्त से मामले को अदालत के बाहर सुलझाने के लिए संपर्क किया था।

आखिर इसके पीछे क्या वजहें हैं कि एक ओर टेरी ने आरके पचौरी को सबसे प्रभावी पद पर वापस लाने का रास्ता तैयार किया, वहीं पीड़ित युवती को अपने साथ ‘खराब बर्ताव’ का दुख लेकर संस्थान की नौकरी छोड़नी पड़ी। अब पचौरी के टेरी में शीर्ष पद पर वापसी की खबर सुन कर पीड़ित युवती ने अगर यह कहा कि इससे वह बहुत चिंतित हो गई है, तो उसकी फिक्र निराधार नहीं है। इससे पहले उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पूछने से लेकर दूसरी तरह के परेशान करने वाले संदेश उसे भेजे जाते रहे हैं। अब टेरी में काम कर चुकी एक अन्य महिला के आरके पचौरी पर यौन-उत्पीड़न का आरोप लगाने से स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसी हालत में टेरी में पचौरी की वापसी से वहां काम कर रही महिला कर्मचारियों पर कैसा असर पड़ेगा?

यह बेवजह नहीं है कि संस्थान के विद्यार्थियों तक ने दीक्षांत समारोह में आरके पचौरी के हाथों डिग्री लेने से इनकार कर दिया। क्या इस स्थिति के लिए संस्थान की कोई जवाबदेही नहीं बनती है? क्या टेरी के लिए अपनी ही आंतरिक समिति की रिपोर्ट और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन-उत्पीड़न से संबंधित कानून की कोई अहमियत नहीं है? महिलाओं के खिलाफ यौन-हिंसा के मामलों को रोकने के मकसद से सख्त कानून बनाए गए हैं, जागरूकता अभियान भी चलाए गए। लेकिन न सिर्फ आम समाज में, बल्कि कार्यस्थलों पर भी महिलाओं के यौन-उत्पीड़न की घटनाएं लगातार सामने आती रहती हैं। अफसोस तब ज्यादा होता है जब वैश्विक पहचान वाले किसी सम्मानित संस्थान में ऐसी घटनाएं घटती हैं, तो उस पर सख्ती बरतने और कार्रवाई करने के बजाय मामले को रफा-दफा करने के लिए वहां का तंत्र खुद सक्रिय हो जाता है।