भारतीय समाज में विवाह समारोह के दौरान दिखावे की प्रवृत्ति इस कदर बढ़ती गई है कि अब उसमें हिंसक प्रवृत्तियों का भी खुल कर प्रदर्शन किया जाने लगा है। शादी-ब्याह के मौके पर बंदूक और राइफल से गोली दाग कर खुशी का इजहार करने का यह कौन-सा तरीका है जिसमें किसी बेकसूर की जान चली जाए। सवाल है कि विवाह के अवसर पर हथियार लेकर चलने की परंपरा के पीछे कौन-सी मानसिकता काम करती है। इस बात को किसी तर्क पर ठीक माना जा सकता है कि कोई व्यक्ति कानून के दायरे में अपनी आत्मरक्षा का हवाला देकर कोई हथियार रखता है।

खुशी के नाम पर चल रही गोली

मगर लोग खुशी का इजहार करने के नाम पर भी गोलियां दाग रहे हैं और उससे कई बार विवाह समारोह में ही मातम पसर जाता है तो उससे किसको खुशी मिल सकती है? दिक्कत यह है कि गोलीबारी में वधू या वर पक्ष के करीबी लोगों के शामिल होने के कारण कई बार मामले को कानूनी अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया जाता है।

लाइसेंसी हथियार सिर्फ आत्मरक्षा के लिए

लाइसेंसी हथियार सिर्फ आत्मरक्षा की कानूनी परिभाषा के तहत रखने की छूट है, लेकिन आज यह दिखावे का औजार बनता जा रहा है। कई लोग शान बघारने या दबंगई दिखाने के लिए ऐसे मौके पर हथियार लेकर आते हैं। जबकि अकारण हवा में गोली चलाना अपराध है और इसके लिए सजा भी हो सकती है।

देखने को मिली अनोखी शादी, दूल्हा-दुल्हन ने दिव्यांग लोगों को बांटी व्हीलचेयर

गौरतलब है कि हरियाणा के चरखी दादरी में एक विवाह समारोह में जश्न के नाम पर किसी ने गोलियां दागीं, जिसकी चपेट में आकर तेरह साल की एक बच्ची की मौत हो गई और उसकी मां जख्मी हो गई। यह कोई पहली घटना नहीं है। लुधियाना में पिछले महीने विदाई के वक्त भाई की चलाई गोली दुल्हन के माथे में जा लगी थी। इसी तरह हाल में मथुरा में जयमाला के दौरान करीबी रिश्तेदार की ऐसी ही लापरवाही के कारण दुल्हन को गोली लग गई।

फायरिंग को शान का प्रदर्शन मानते हैं लोग

देश के कई इलाकों में खुशी मौके पर हवा में गोलियां चलाना शान का प्रदर्शन माना जाता रहा है, लेकिन इसके पीछे कहीं न कहीं लोगों के भीतर छिपी सामंती कुंठा होती है। शादी-ब्याह में रिश्तेदार ही दिखावे के लिए गोलियां दागने लगें, तो समझा जा सकता है कि हमारे समाज में यह कुंठा कितनी गहरी हो चुकी है। दिखावे की हिंसा की ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।