राजनेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने राजनीतिक मतभेद विदेशों में न जाहिर करें। जो कुछ कहें, सोच-समझ कर कहें। मगर लगता है, इन दिनों हमारे नेता इस नैतिक तकाजे को भूलते जा रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर का एक पाकिस्तानी चैनल पर दिया बयान इसी की एक कड़ी है। भारत-पाकिस्तान के बीच पैदा तनाव को समाप्त करने के मद्देनजर पूछे जाने पर उन्होंने तथाकथित तौर पर कहा कि जब तक केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है, इस दिशा में कोई सार्थक पहल संभव नहीं है। यह तभी हो सकता है जब मोदी को हटा कर कांग्रेस की सरकार बने। हालांकि कांग्रेस इस बात से इनकार कर रही है कि अय्यर ने ऐसा कोई बयान दिया, जबकि भाजपा और राजद ने इस बयान की कड़े शब्दों में निंदा की है। कुछ दिन पहले पूर्व विदेशमंत्री और कांग्रेस के ही नेता सलमान खुर्शीद का पाकिस्तान यात्रा के समय एक संस्थान में दिया गया बयान भी इसी तरह विवाद का कारण बना था।
प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह जब ब्रिटेन के दौरे पर गए थे, तब उन्होंने अंगरेजी हुकूमत की तारीफ की थी, तब भी इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था कि राजनेताओं को विदेशी मंचों से ऐसी कोई बात नहीं कहनी चाहिए जिससे देश की छवि खराब हो। मगर लगता है, हमारे नेता कोई सबक नहीं लेना चाहते। भारत में बहुदलीय व्यवस्था है और यहां अक्सर पक्ष-विपक्ष के बीच नीतियों को लेकर मतभेद बने रहते हैं। उन मतभेदों को वे अपने राजनीतिक लाभ के लिए मतदाताओं के बीच भी प्रकट करते रहते हैं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इस पर शायद ही किसी को एतराज हो। मगर अंतरराष्ट्रीय या फिर किसी दूसरे देश के मंच से ऐसे मतभेद प्रकट किए जाने लगें, तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता।
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में आई खटास को दूर करने के लिए सरकार के साथ जो भी मतभेद है, उसे संसद में बहस करके दूर किया जा सकता है। लिखित रूप में सरकार से अपनी राय बदलने की अपील की जा सकती है। ऐसे भी कई मौके आए जब विदेशी मामलों में सरकारों ने सर्वदलीय बैठक बुला कर राय-मशविरा किया और फिर आगे कोई कदम बढ़ाया है। कभी विपक्षी नेताओं ने संबंधित देश में जाकर अपनी सरकार की निंदा नहीं की। अगर मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान के टीवी चैनल पर मोदी सरकार के विरुद्ध बयान दिया, तो आखिर उसका उन्हें या कांग्रेस को लाभ भी क्या मिल सकता है, सिवाय देश की छवि खराब करने के। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ विदेशी मंचों से पिछली कांग्रेस सरकारों की नाकामियों का उल्लेख कर चुके हैं, जिसे लेकर कांग्रेस में खासी नाराजगी देखी गई।
मगर इसका मतलब यह नहीं कि बदले की राजनीति के तहत जहां मौका मिले, विदेशों में बेतुके बयान दिए जाएं। यों जब से सेटेलाइट टीवी और सोशल मीडिया का तेजी से प्रसार हुआ है, देशों की अंदरूनी राजनीतिक रस्साकशी परदे की चीज नहीं रह गई है। खबरें और उनसे जुड़े विश्लेषण सहज उपलब्ध हो जाते हैं। पर जब किसी राजनेता को पता हो कि पराए देश का चैनल अपने देश के दर्शकों को ध्यान में रख कर कोई कार्यक्रम तैयार कर रहा है, उसके लिए बातचीत कर रहा है, तो स्वाभाविक ही उससे संयम की अपेक्षा रहती है। मणिशंकर अय्यर को भी इस तकाजे को ध्यान में रखने की जरूरत थी।