भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है, मगर यहां के किसान आज भी कई तरह की समस्याओं और परेशानियों से घिरे हुए हैं। यही वजह है कि किसानों की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार की एक रपट के मुताबिक, इस वर्ष जनवरी से जून के बीच राज्य में 1,267 किसानों ने आत्महत्या कर ली। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2022 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 11,290 लोगों ने आत्महत्या कर ली, जिनमें 5,207 किसान और 6,083 खेतिहर मजदूर थे और इनमें महाराष्ट्र से सबसे ज्यादा थे।
फसलों की बढ़ती लागत और उत्पादन में गिरावट से भी चिंता
इसी तरह वर्ष 2021 में कृषि कार्यों में लगे 10,881 लोगों और 2020 में 10,677 लोगों ने अपनी जान दे दी। किसानों की खुदकुशी के पीछे पारिवारिक कर्ज या आर्थिक संकट को सबसे बड़ी वजह माना जाता है। हालांकि इन आर्थिक परेशानियों के भी कई स्तर हैं। मसलन, प्राकृतिक आपदा, कर्ज का बोझ, फसलों की बढ़ती लागत, घटती आय और फसलों के उत्पादन में गिरावट। महाराष्ट्र सरकार की रपट में कहा गया है कि राज्य में पिछले छह माह में किसानों की खुदकुशी के सबसे ज्यादा मामले विदर्भ क्षेत्र के अमरावती मंडल में सामने आए हैं।
बहुत से किसान खेती के लिए बैंक और साहूकारों से कर्ज लेते हैं और अगर प्राकृतिक आपदा की वजह से फसल बर्बाद हो जाए या उत्पादन कम हो, तो उनके लिए कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाता है। उर्वरक, खेती के लिए उपकरण और सिंचाई पर होने वाला खर्च बढ़ रहा है, जबकि किसानों की आय में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
लिहाजा, किसानों की आर्थिक परेशानियां बढ़नी स्वाभाविक हैं। लंबे समय से चली आ रही न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी की मांग भी लंबित है। दूसरी ओर, उद्योग जगत के ऋणों के प्रति सरकार के नजरिए में जो नरमी देखी जाती है, वह किसानों के लिए नहीं दिखती। ऐसे में किसानों की समस्याओं की जटिलता अगर उन्हें आत्महत्या के कगार पर ले जाती है तो इसे एक नतीजे के तौर पर देखा जा सकता है। इस समस्या के निराकरण के लिए ठोस और कारगर उपाय किए जाने जरूरत है, अन्यथा यह स्थिति और जटिल होगी।