सहकारी बैंकों में अपनी गाढ़ी कमाई जमा करना अब लोगों के लिए जोखिम भरा हो गया है। निम्न और मध्यम आयवर्ग के लोग अपनी जरूरतों में कटौती कर बेटी की शादी या बच्चों की शिक्षा के लिए इस भरोसे से अपनी छोटी पूंजी जमा करते हैं ताकि समय आने पर उसका सदुपयोग करेंगे। मगर सहकारी बैंकों में जिस तरह आए दिन गबन और घोटाले सामने आ रहे हैं, उससे उनका विश्वास डगमगा गया है।

यह सच्चाई है कि इन बैंकों से कर्ज लेकर कुछ शातिर गायब हो जाते हैं और कभी-कभी तो प्रबंधक ही धांधली कर गरीबों की जमाराशि डकार जाते हैं। रिजर्व बैंक की सख्ती के बावजूद सहकारी बैंक अपने आय-व्यय ब्योरे में गड़बड़ियां करते हैं, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? मुंबई में न्यू इंडिया को-आपरेटिव बैंक में 122 करोड़ रुपए के गबन के बाद एक बार फिर यह साबित हुआ है कि सहकारी बैंकों में पैसा सुरक्षित नहीं है।

बैंकों में पारदर्शिता और विश्वसनीयता कायम करना आवश्यक

हालांकि रिजर्व बैंक ने कड़े कदम उठा कर और कई पाबंदियां लगा कर संकेत दिया है कि वह ऐसे मामलों को बर्दाश्त नहीं करेगा और उसे बैंक ग्राहकों की चिंता है। कोई दो मत नहीं कि अब इन बैंकों में पारदर्शिता और विश्वसनीयता कायम करना आवश्यक है।

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चिंता की बात है कि सहकारी बैंकों में एक के बाद एक घोटाले हो रहे हैं। ये बैंक अपने बड़े कारोबार दर्शा कर आम नागरिकों को पैसे जमा करने और अधिक ब्याज का प्रलोभन देते हैं। हालांकि इन बैंकों के नियमन और निगरानी की व्यवस्था है, फिर भी इनके संचालन से जुड़े कर्मचारी और प्रबंधक अनियमितताएं तथा गबन कर सहकारी भावना को ठेस पहुंचाते हैं।

इससे पहले भी RBI कर चुकी है कार्रवाई

यह पहली बार नहीं, जब रिजर्व बैंक ने इतनी बड़ी कार्रवाई की है। इससे पहले वर्ष 2019 में भी पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआपरेटिव बैंक में घोटाले सामने आने पर केंद्रीय बैंक ने कई पाबंदियां लगाई थीं। बाद में उस बैंक का अधिग्रहण कर लिया गया था। मगर सवाल यह है कि तमाम सख्तियों के बावजूद सहकारी बैंकों में अनियमितताएं क्यों बढ़ रही हैं। यह तो ग्राहकों के भरोसे के साथ बैंकों का विश्वासघात ही है।