महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के लिए हुए चुनावों के साथ तेरह राज्यों की छियालीस सीटों पर उपचुनावों के नतीजे यही बताते हैं कि सभी जगहों पर कोई एक ही हवा नहीं बह रही थी और अलग-अलग राजनीतिक दलों को कामयाबी मिली है। महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों पर सबकी नजर थी, जहां के नतीजों को राष्ट्रीय राजनीति पर असर डालने वाले एक प्रमुख कारक के तौर पर देखा जा रहा है। एक ओर, महाराष्ट्र में जहां सत्ता में रही महायुति गठबंधन को अप्रत्याशित कामयाबी मिली, वहीं झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाले सत्ताधारी इंडिया गठबंधन को अच्छी जीत मिली। इससे यही साफ होता है कि दोनों राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान कई जगहों पर मतदान पर सत्ता-विरोधी लहर का असर पड़ने की जो आशंका जाहिर की जा रही थी, वह निराधार निकली। महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन और खासतौर पर भाजपा को जैसी सफलता मिली है, उसकी उम्मीद शायद राजग के नेताओं को भी नहीं रही होगी।

चुनाव में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला गठंधन कोई प्रभाव नहीं डाल सका

दरअसल, महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी गठबंधन इस बात को लेकर आश्वस्त था कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने जिस तरह मूल पार्टी को तोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बनाई थी और उसके बाद राज्य में उसका जो प्रदर्शन रहा, उसके मद्देनजर मतदाता अलग विकल्प चुनेंगे। मगर चुनाव के दौरान महायुति गठबंधन से जुड़े दल और खासतौर पर भाजपा की ओर से जिस तरह का आक्रामक प्रचार अभियान चलाया गया, उसने आम जनता को शायद ज्यादा प्रभावित किया।

हालांकि ‘इंडिया’ के कुछ नेताओं की ओर से मतदान और गिनती से संबंधित सवाल उठाए गए, लेकिन इस पर स्पष्टता कायम करना चुनाव आयोग का काम है। अब चुनाव के नतीजों के बाद महाराष्ट्र में जैसे समीकरण बनते दिख रहे हैं, उसमें महायुति के सामने एक बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव की होगी। वहीं आने वाले दिनों में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के सामने अपनी प्रासंगिकता को फिर से कायम करने की चुनौतियां बढ़ सकती हैं।

झारखंड में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से पूरा प्रयास किया गया कि चुनाव में झामुमो सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर बनाई जा सके, लेकिन उसमें उसे नाकामी ही मिली। झामुमो और सहयोगी दलों ने पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत जीत दर्ज की है। ऐसा लगता है कि झारखंड में हेमंत सोरेन को एक मामले में जेल जाने के बावजूद अपने कार्यकाल में शुरू कुछ योजनाओं और अन्य मुद्दों पर वहां के मतदाताओं ने अपना स्पष्ट समर्थन दिया। जाहिर है, हेमंत सोरेन अब ज्यादा सशक्त होकर अपनी अगली सरकार चलाने में खुद को शायद अधिक सहज महसूस करें। जहां तक उपचुनावों का सवाल है तो तेरह अन्य राज्यों में छियालीस सीटों पर मतदान के नतीजे मिले-जुले आए हैं।

मसलन, बिहार में चारों सीटों पर राजग के उम्मीदवार जीते, वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का स्पष्ट दबदबा रहा। उत्तर प्रदेश में नौ सीटों के नतीजे मिले-जुले होने के बावजूद वहां के कुंदरकी सीट के परिणाम ने सबको चौंकाया, जहां मुसलिम बहुल क्षेत्र में भाजपा के प्रत्याशी को बड़ी जीत मिली। एक अहम नतीजा केरल के वायनाड लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव का रहा, जहां कांग्रेस से प्रियंका गांधी ने चार लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की। ताजा नतीजे यह संकेत देते हैं कि आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति पर इसका खासा असर पड़ेगा और अन्य दलों से सहयोग के सवाल पर भाजपा अपनी दावेदारी मजबूत बता सकती है।