करीब डेढ़ महीने पहले, नेपाल का संविधान लागू होते ही वहां के तराई क्षेत्र में असंतोष का लावा फूट पड़ा था। कई दिन तक विरोध-प्रदर्शनों और नाकेबंदी का सिलसिला चलता रहा और इससे निपटने के लिए पुलिस की गोलीबारी में चालीस लोग मारे गए थे। अलबत्ता एक महीने से शांति का माहौल दिख रहा था। पर लगता है यह शांति सतह पर ही थी, और भीतर ही भीतर असंतोष की आग फिर से सुलग रही थी। ऐसा होना स्वाभाविक है, क्योंकि मधेशी समुदाय की नाराजगी की वजह कोई फौरी या छोटी-मोटी घटना नहीं है। वे नेपाल के नए संविधान पर कुपित हैं। एक बार फिर वे संविधान की बाबत अपना आक्रोश जाहिर करने के लिए सड़कों पर उतर आए। इस विरोध को कुचलने के लिए वही तरीका अपनाया गया जो पहले अख्तियार किया गया था। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई और इसमें उन्नीस साल के एक भारतीय युवक की मौत हो गई। स्वाभाविक ही इस पर भारत ने चिंता जताई है।

विदेश मंत्रालय ने नेपाल के राजदूत को बुला कर उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराया, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली से बात की और घटना की जांच कराने का आग्रह किया। इस पर नेपाल की कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया फिलहाल सामने नहीं आई है। पर हाल के अनुभव को देखते हुए बहुत सकारात्मक रुख की उम्मीद नहीं बंधती। फिर, बात केवल दो रोज पहले हुए वाकये की नहीं है। सवाल है कि क्या नेपाल का राजनीतिक नेतृत्व हिंसा और तनाव के कारणों की पहचान कर उन्हें दूर करने की पहल करेगा? वे तो मधेशी और थारु समुदायों की शिकायतों पर गौर करने के बजाय उन्हें दरकिनार करते आए हैं। यही नहीं, नेपाल के अनेक नेता यह आरोप लगा चुके हैं कि मधेशियों के विरोध-प्रदर्शनों के पीछे भारत का हाथ रहा है।

यह सही है कि भारत ने नेपाल के नए संविधान को लेकर पैदा हुए असंतोष को दूर करने की हिदायत दी थी। मगर वहां के संविधान पर भारत सरकार कोई प्रतिक्रिया जाहिर न करती, तब भी तराई क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नाराजगी का ही आलम रहता। दरअसल, बीस सितंबर को लागू हुए नेपाल के नए संविधान ने मधेशियों और थारु समुदाय को बुरी तरह आशंकित कर दिया है। उन्हें लगता है कि सात राज्यों के रूप में संघीय ढांचे की जिस ढंग से तजवीज की गई है उसके चलते विधायिका में उनका प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के अनुपात में बहुत कम रह जाएगा। अनेक जनजातियां भी आनुपातिक प्रणाली के तहत चुने जाने वाले प्रतिनिधित्व का हिस्सा घटा दिए जाने से नाराज हैं।

2007 के अंतरिम संविधान में इसे अट्ठावन फीसद रखने का प्रावधान था, पर अब पैंतालीस फीसद कर दिया गया है। संविधान के बहुत-से अहम प्रावधान बिना पर्याप्त बहस के स्वीकार कर लिए गए। नेपाल और भारत की दोस्ती बहुत पुरानी है। पड़ोसी होने के साथ ही इतिहास और सभ्यता-संस्कृति से लेकर बहुत कुछ दोनों के बीच साझा है। दोनों देशों के बीच एक मैत्री संधि दशकों से कायम है। नेपाल के लिए भारत एक बड़ा आपूर्तिकर्ता देश भी रहा है। लेकिन कुछ समय से दोनों के बीच जैसी खटास उभरी है, वैसी स्थिति शायद पहले कभी नहीं थी। पर मधेशी और थारु समुदायों की आशंकाएं दूर करना दोनों मुल्कों की दोस्ती के लिहाज से कहीं ज्यादा, नेपाल की आंतरिक शांति और स्थिरता के लिए जरूरी है।

लगातार ब्रेकिंग न्‍यूज, अपडेट्स, एनालिसिस, ब्‍लॉग पढ़ने के लिए आप हमारा फेसबुक पेज लाइक करेंगूगल प्लस पर हमसे जुड़ें  और ट्विटर पर भी हमें फॉलो करें