अगले वित्तवर्ष के बजट की तैयारियां चल रही हैं। ऐसे वक्त में विकास दर संबंधी ताजा आकलन सरकार के लिए चिंता का विषय हो सकता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ ने अनुमान लगाया है कि चालू वित्तवर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.4 फीसद रह सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसके 6.6 फीसद पर रहने का अनुमान लगाया था। अगर एनएसओ का अनुमान सही साबित होता है, तो यह कोरोनाकाल के बाद सबसे कम विकास दर होगी।

हालांकि एनएसओ के अनुमान के मुताबिक चालू वित्तवर्ष की दूसरी छमाही में कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में विकास दर बढ़ेगी। मगर इससे अर्थव्यवस्था के दूसरे पक्षों पर कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, दावा नहीं किया जा सकता। इसलिए कि सकल घरेलू उत्पाद के मामले में कई चीजें काफी असंतुलित चल रही हैं।

दूसरी छमाही में विकास दर कमजोर रहने का अनुमान

चालू वित्तवर्ष की दूसरी तिमाही में विकास दर छह फीसद से नीचे दर्ज हुई थी और उसमें विनिर्माण क्षेत्र का योगदान काफी नीचे नजर आया था, तभी से विशेषज्ञ वृद्धि दर को लेकर चिंतित नजर आने लगे थे। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है, पर वही सुस्त रफ्तार में चल रहा है। निर्माण क्षेत्र में भी सुस्ती देखी जा रही है। दूसरी छमाही में भी इसके कमजोर रहने का अनुमान है।

जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के पीछे कुछ ऐसी रही परिस्थिति, सत्ता परिवर्तन के बाद कनाडा के भारत से रिश्ते होंगे बेहतर

हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोनाकाल के बाद जो बढ़ी वृद्धि दर दर्ज हुई थी, वह स्वाभाविक नहीं थी। एनएसओ के ताजा आकलन में अर्थव्यवस्था की स्वाभाविक वृद्धि दर दर्ज हुई है। मगर महंगाई का रुख अब भी नीचे की तरफ नहीं रहने वाला। इसके पांच फीसद से ऊपर रहने का अनुमान है। यानी रिजर्व बैंक के लिए रेपो दरों में कटौती का निर्णय करना दुविधा का विषय होगा। इसके अलावा, सरकार को राजस्व घाटा पाटने के लिए अपने खर्चों में कटौती करनी होगी।

सरकार द्वारा राजस्व घाटा रोकने की कोशिश

सरकार की कोशिश है कि राजस्व घाटा 4.9 फीसद पर रोक कर रखा जाए। मगर इसके लिए सरकारी खर्चों में कटौती करनी होगी और उसका असर कई महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर पड़ेगा। फिर, आर्थिक वृद्धि दर में कमी का प्रभाव प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर भी पड़ेगा। पहले ही सरकार को इस मोर्चे पर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। डालर के मुकाबले रुपए की घटती कीमत और विदेशी निवेशकों के धन निकासी के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार छीजन बनी रहने से अपेक्षित निवेश आकर्षित नहीं हो पा रहा।

कोरोना के बाद सामने आया एक और नया खतरा, सभी राज्य अलर्ट

चालू वित्तवर्ष की दूसरी छमाही में कृषि क्षेत्र में सुधार का अनुमान है, मगर वह मामूली है। उससे आगे अर्थव्यवस्था की मजबूती का बहुत भरोसा नहीं बनता। इसलिए भी कि कृषि क्षेत्र के लिए व्यावहारिक नीतियां अभी तक नहीं बन पाई हैं। अर्थव्यवस्था के मामले में विनिर्माण क्षेत्र पर अधिक भरोसा किया जाता रहा है, मगर वहां उत्पादन इसलिए घटता गया है कि उपभोक्ता व्यय काफी घटा है।

निर्यात के मोर्चे पर लगातार देखी जा रही है सुस्ती

इसका कारण लोगों की आय न बढ़ना और क्रयशक्ति का लगातार कमजोर होते जाना है। इसका असर नए रोजगार सृजन पर भी देखा जा रहा है। यह असंतुलन पेचीदा होता गया है। इसे दूर किए बगैर वृद्धि दर को लेकर कोई भरोसेमंद दावा करना कठिन बना रहेगा। मगर सरकार तदर्थ उपायों के जरिए इससे पार पाने और वास्तविक स्थिति पर परदा डाल कर आर्थिक विकास की गुलाबी तस्वीर पेश करती देखी जाती है। निर्यात के मोर्चे पर लगातार सुस्ती देखी जा रही है। ऐसी स्थिति में सरकार को आर्थिक विकास की नई रणनीति पर काम करना होगा।