पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस-वे पर जिस तरह के हादसे हुए, उसमें वाहन चालकों की लापरवाही या चूक को जिम्मेदार बताया जा सकता है। मगर सड़क किनारे बने ढाबे या होटल भी इसका बड़ा कारण बन रहे हैं, क्योंकि अक्सर इनके सामने ट्रक या अन्य वाहन खड़े कर दिए जाते हैं और वहां से गुजरने वाली कोई अन्य गाड़ी उनसे टकरा जाती है। ऐसे अनेक मामले सामने आए, जिसमें पिछले महीने की शुरुआत में राजस्थान के फलोदी में एक टेम्पो ट्रेवलर के सड़क किनारे खड़े ट्रेलर से टकराने की घटना ने सबका ध्यान खींचा था। उसमें दस महिलाओं और चार बच्चों सहित पंद्रह लोगों की जान चली गई थी।

इस घटना का सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और ऐसे हादसों को लेकर चिंता जताई थी। उसी मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार को शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआइ और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सख्त नाराजगी जताई। अदालत ने यह भी कहा कि एक्सप्रेस-वे और राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे बने अवैध ढाबे तथा होटल सड़क हादसों की बड़ी वजह बन रहे हैं और इसे रोकने के लिए पूरे देश में लागू होने वाले दिशा-निर्देशों पर विचार किया जाएगा।

यह कोई छिपी बात नहीं है कि लंबी दूरी की निर्बाध सड़कों के किनारे कई जगहों पर ढाबे या होटल तो बना दिए जाते हैं, लेकिन वहां सड़क से अलग हट कर वाहन लगाने के लिए जगह नहीं होती। नतीजतन, वहां खाने-पीने आदि के लिए रुकने वाले लोग अपनी गाड़ी सड़क किनारे ही खड़ी कर देते हैं। जबकि ऐसी सड़कों पर आमतौर पर वाहनों की रफ्तार काफी तेज होती है और पीछे से आने वाली गाड़ियों के टकराने की आशंका हमेशा बनी रहती है।

इसके बावजूद बड़े पैमाने पर सड़क किनारे बिना रोकटोक के ऐसे ढाबे और होटल चलने की जिम्मेदारी किसकी है? एक ही प्रकृति के लगातार हादसों और ज्यादातर घटनाओं में कारण स्पष्ट होने के बावजूद सरकार की ओर से अब तक इस दिशा में कोई पहल क्यों नहीं की गई? इसी को रेखांकित करते हुए अदालत ने सवाल उठाया है कि इस तरह के ढाबों पर कार्रवाई के लिए कौन-से नियम हैं और अब तक इस संबंध में क्या कदम उठाए गए हैं।

हैरानी की बात है कि लगातार सड़क हादसों के कारणों की पहचान करके उसे दूर करने के लिए सरकार और संबंधित महकमों को खुद अपनी ओर से जो पहल करनी चाहिए थी, उसके बारे में सुप्रीम कोर्ट को ध्यान दिलाना पड़ता है।

देश भर में अच्छी सड़कों का जाल तो बिछाया जा रहा है, लेकिन उन पर सफर भी उतनी ही सुरक्षित हो, यह सुनिश्चित करने का सवाल एक तरह से हाशिये पर छोड़ दिया गया है। एक्सप्रेस-वे या राष्ट्रीय उच्च मार्गों पर निर्बाध सफर की सुविधा तो है, लेकिन अगर कहीं ढाबा या होटल बना दिया गया है, तो अव्वल तो उनकी वैधता की पड़ताल की जरूरत नहीं समझी जाती, फिर वहां वाहन लगाने की जगह अनिवार्य रूप से हो, यह सुनिश्चित करने की अनदेखी की जाती है।

विडंबना यह है कि देश भर में लगातार हो रहे हादसों में लोगों की जान जा रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि ऐसी घटनाओं को रोकने का सवाल सरकार की प्राथमिकता में शुमार नहीं है। सड़कों के डिजाइन से लेकर हादसों की कई वजहों को लेकर हुए अध्ययनों में एक ठोस नीति की जरूरत लंबे समय से बताई जा रही है। अगर समय रहते इस दिशा में पहल नहीं हुई, तो देश को इसका बहुस्तरीय नुकसान होगा।