महानगरों की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वे हर आदमी को ठिकाना मयस्सर नहीं करा पाते। वहां लोगों को गुजारे का कोई जरिया भले मिल जाए, पर हर किसी को सिर पर छत नसीब नहीं हो पाती। लाखों लोग दिन भर दिहाड़ी करके, रिक्शा-रेहड़ी-ठेला खींच कर या भीख मांग कर किसी तरह गुजारे भर की आमद तो कर लेते हैं, पर रात गुजारने के लिए उन्हें फुटपाथों पर खुले आसमान या उपरिगामी पुलों के नीचे, खाली बंद दुकानों के बाहर कोई जगह तलाशनी पड़ती है।

ऐसे हादसों की खबरें कुछ-कुछ समय पर हर शहर में मिल जाती हैं

इस तरह इन्हें मौसम की मार तो झेलनी ही पड़ती है, अक्सर तेज रफ्तार वाहनों के नीचे आकर दम तोड़ देने या अपंग होने का खतरा भी बना रहता है। दिल्ली के शास्त्री पार्क इलाके में फुटपाथ पर सो रहे लोगों के ऊपर एक बेकाबू ट्रक के चढ़ जाने की घटना इसकी ताजा कड़ी है। इस हादसे में तीन लोगों की मौत हो गई, जबकि दो को गंभीर स्थिति में भर्ती कराना पड़ा। ऐसे हादसों की खबरें कुछ-कुछ समय पर हर महानगर से मिल जाती हैं। हर घटना के बाद सवाल उठता है कि आखिर इस तरह सड़कों के किनारे, फुटपाथों पर सोने वालों के लिए कोई सुरक्षित इंतजाम क्यों नहीं किया जाता।

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि में रात में भी आवाजाही लगी रहती है

हालांकि अनियंत्रित वाहनों के सड़कों के बीच की जगहों और फुटपाथों पर चढ़ने से रोकने की गरज से बहुत सारी जगहों पर लोहे की मजबूत बाड़ लगाई जाती है, मगर बहुत सारी जगहों पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि शहरों में सड़कों पर रात में भी आवाजाही लगी रहती है। रात के वक्त शहरों की सड़कें खासकर माल ढुलाई वाले वाहनों के लिए खोल दी जाती हैं। इसके अलावा, बहुत सारे युवा देर रात को शराब पीकर वाहन दौड़ाना अपनी शान समझते हैं। वाहनों के अनियंत्रित होकर फुटपाथों पर चढ़ जाने की घटनाएं अक्सर शराब के नशे में गाड़ी चलाने की वजह से होती पाई गई हैं।

हालांकि दिल्ली में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की जाती है, इसके बावजूद बहुत सारे वाहन चालकों की मनमानी पर लगाम लगाना कठिन बना हुआ है। देर रात को उनकी मनमानी और बढ़ जाती है। इससे यातायात व्यवस्था पर तो प्रश्नचिह्न लगता ही है, रोजी-रोजगार की तलाश में हर वर्ष लाखों की संख्या में आने वाले लोगों के लिए रहने की व्यवस्था पर भी गंभीरता से विचार की जरूरत रेखांकित होती है।

अनेक मौकों पर यह बात कही जाती रही है कि बढ़ते पलायन और महानगरों पर उसके बढ़ते बोझ की वजह से सरकारों के लिए बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना चुनौती है। इसके समाधान की दिशा में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। मगर न तो सरकारों ने रोजी-रोजगार के साधनों के विकेंद्रीकरण पर गंभीरता से विचार किया, न महानगरों में सबके रहने के ठिकाने उपलब्ध कराने की व्यावहारिक पहल हो पाई। दिल्ली में रैन बसरे बनाए तो गए, मगर उनकी क्षमता इतनी नहीं है कि लोगों को फुटपाथों पर सोने को मजबूर न होना पड़े।

उनमें भी जरूरी सुविधाओं के अभाव की शिकायतें आती रहती हैं। दरअसल, महानगरों में बेआसरा लोगों के बारे में कोई व्यावहारिक नीति बनाने के बारे में सोचा ही नहीं गया। अगर जगह-जगह, थोड़े शुल्क के साथ भी, धर्मशाला जैसी रात गुजारने की जगहें बना दी जाएं, तो लोगों के जिंदगी जोखिम में डाल कर फुटपाथ पर सोने से काफी हद तक निजात दिलाई जा सकती है।