एक ओर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर लगाम नहीं लग पाना आज भी एक बड़ी चुनौती है, वहीं कानूनी नुक्तों का फायदा उठा कर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषी को भी कई बार रियायत दे दी जाती है। संभव है कि कानून की किसी व्याख्या के मुताबिक, अदालत में बलात्कार के दोषी सिद्ध हुए व्यक्ति को जमानत का पात्र समझा जाए, लेकिन इससे पीड़ित महिला के लिए न्याय सुनिश्चित किए जाने की प्रक्रिया गंभीर रूप से बाधित होती है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में वर्ष 2019 में पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा हुई थी। अदालत ने भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार के मामले और बच्चे-बच्चियों के यौन शोषण से सुरक्षा के कानून ‘पाक्सो’ में गंभीर यौन हिंसा के प्रावधानों के मुताबिक सजा दी थी। तब यह घटना देश भर में व्यापक चिंता और आक्रोश का कारण बनी थी।
मगर अब दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंगर की सजा को निलंबित करने का आदेश दे दिया। इस संदर्भ में एक अहम तथ्य यह है कि दोषी सिद्ध होने के बाद निचली अदालत ने साफ कहा था कि सेंगर को जीवन भर जेल में रहना होगा।
जाहिर है, अपराध की गंभीरता और प्रकृति के मद्देनजर निचली अदालत में सेंगर को मिली सजा को कानून के मुताबिक माना जा रहा था, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने जिस आधार पर उस सजा को निलंबित करने का आदेश दिया, वह स्वाभाविक ही विवादों के घेरे में आ गया। अब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है।
दरअसल, इस घटना के बाद पीड़िता को जिन हालात का सामना करना पड़ा और उसके जीवन तक पर जिस तरह के जोखिम खड़े हुए थे, वे बेहद अप्रत्याशित थे, मगर उससे साफ था कि जघन्य अपराधों के बाद एक ऊंचे राजनीतिक रसूख वाला आरोपी पीड़िता को खामोश करने के लिए किस हद तक जा सकता है।
इस दौरान पीड़िता के पिता की जान चली गई; एक ट्रक ने उस कार को टक्कर मार दी, जिसमें वह परिवार के अन्य लोगों के साथ जा रही थी। उस घटना में पीड़िता और उसका वकील बुरी तरह घायल हो गए, जबकि उसकी दो मौसियों की मौत हो गई। समझा जा सकता है कि इस पूरे मामले में पीड़िता को किस तरह के हालात का सामना करना पड़ा।
अक्सर समूचे देश में महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों पर काबू पाने, खासकर बलात्कार के दोषियों के प्रति बेहद सख्त रुख अख्तियार करने और यहां तक कि फांसी की सजा की मांग की जाती है। मगर जब किसी रसूख वाले अपराधी की सजा को लेकर रियायत बरतने की खबर आती है, तब यह समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर कानून के काम करने के पैमाने क्या हैं!
यह बेवजह नहीं है कि तमाम कानूनी प्रावधानों के बावजूद इस अपराध का खौफ व्यापक स्तर पर महिलाओं के जीवन को प्रभावित करता है। बलात्कार के मामले में सजा होने की बेहद कम दर को लेकर पहले ही चिंता जताई जाती रही है। इसका मुख्य कारण कानून की बारीकियों के आधार पर कई बार वास्तविक दोषियों का बच निकलना रहा है।
कहा जाता है कि न्याय केवल होना नहीं चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए। मगर राजनीति या अन्य क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाले सजायाफ्ता दोषी भी जब कानून से रियायत हासिल कर लेते हैं, तब न्याय की अवधारणा को गहरी चोट लगती है।
