हाल के वर्षों में किशोरों और युवाओं के बीच नशीली दवाओं के बढ़ते सेवन से जिस तरह की समस्या खड़ी हो रही है, वह एक गंभीर चिंता का विषय है। हालत यह है कि जहां खरीद-बिक्री पर कानूनी सख्ती की वजह से मादक पदार्थों की उपलब्धता आसान नहीं है, वहां कुछ युवा ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करने लगते हैं जो प्रतिबंधित नहीं हैं, लेकिन उनसे नशा होता है। इस वजह से न केवल सेहत संबंधी परेशानियां, बल्कि सामाजिक समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं। शायद इसी तरह की चिंताओं के मद्देनजर नैनीताल उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड में चार सौ चौवालीस ऐसी दवाइयों की बिक्री पर रोक लगा दी है, जिन्हें नशा पैदा करने वाली माना जाता है। दरअसल, कुछ दवाएं ऐसी होती हैं जो बीमारी के इलाज के अलावा किन्हीं खास स्थितियों में नशा भी पैदा करती हैं। इसलिए इनकी बिक्री को लेकर कोई कानूनी प्रावधान होना चाहिए, ताकि दवाओं का उपयोग बीमारी के इलाज के लिए हो, न कि नशे के लिए।

इस तरह के नशे की गिरफ्त में आने की कई वजहें होती हैं। अपने आसपास मादक पदार्थों या नशीली दवाओं के सेवन के आदी लोगों की संगति में आने वाले किशोर या युवा खुद भी इनका सेवन शुरू कर देते हैं। दूसरे, समाज में इस तरह की धारणा बनाई जाती है कि कोई नशा करना बाकी साधारण लोगों से अलग और श्रेष्ठ दिखना है, क्योंकि इन्हें खरीदने के लिए विशेष प्रयास और ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इस तरह की बातों में आकर कमजोर चेतना वाले किशोर या युवा पहले तो शौक में एक-दो बार इनका इस्तेमाल करते हैं। लेकिन जब खास होने की झूठी धारणा उनके मानस में घुल जाती है, तब वे अक्सर ऐसा करने लगते हैं। फिर इनकी लत लगने पर छुटकारा मुश्किल हो जाता है। जाहिर है, नशीले पदार्थों की आदत की मार दोतरफा होती है। सेहत को बहुस्तरीय नुकसान और फिर चिड़चिड़ापन, गुस्सा, बेलगाम मन:स्थिति, हीनताबोध जैसी मनोविज्ञान से कई जुड़ी परेशानियां, जो किसी भी युवा के समूचे व्यक्तित्व पर बुरा असर डालती हैं।

ऐसे मामले आम हैं कि किसी वस्तु की बिक्री पर पाबंदी लगा दी जाती है, लेकिन उसके नुकसान के बारे में उपभोक्ताओं को कुछ नहीं पता होता है। नतीजतन, लोग उस प्रतिबंधित वस्तु को चोरी-छिपे या कालाबाजारी करने वालों से खरीदते हैं और उसका इस्तेमाल करते रहते हैं। इसलिए अदालत ने राज्य सरकार को सुझाव दिया कि नशीले पदार्थों के प्रति युवाओं में जागरूकता पैदा करने के लिए बारहवीं कक्षा में एक पाठ्यक्रम भी रखा जाना चाहिए। अदालत का यह सुझाव इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि नशीली दवाओं की बिक्री पर रोक के साथ-साथ इस मसले पर जागरूकता सबसे अहम पहलू है। यों भी, नशीली दवाओं के सेवन को पूरी तरह छुड़ाना एक लंबी प्रक्रिया होती है, इसलिए इसमें सामाजिक सहभागिता की बड़ी भूमिका है। इसके नुकसानों की जानकारी के साथ-साथ इसके सेवन से बचने के लिए उसके पीड़ितों के मानसिक बल को मजबूत करने से लेकर इससे संबंधित संदेशों का समाज में लगातार प्रचार करने की जरूरत है। जब तक बच्चों और युवाओं के मानस में यह बात नहीं बिठाई जाएगी कि नशीले पदार्थों के सेवन का उनके व्यक्तित्व और फिर समूचे समाज पर प्रतिकूल असर पड़ता है, तब तक वे उससे बचने के लिए अपनी ओर से तैयार नहीं होंगे। बच्चों या युवाओं को नशे से बचाना बेहतर भावी पीढ़ी के निर्माण की ओर एक कदम है। इसलिए सरकार के साथ-साथ समाज की भी यह जिम्मेदारी होनी चाहिए।