जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। शायद ही कोई महीना गुजरता है, जब आतंकी घात लगा कर हमला नहीं करते। शनिवार को कुलगाम इलाके में तलाशी अभियान के दौरान दो जगहों पर सुरक्षाबलों के साथ दहशतगर्दों की मुठभेड़ हो गई। दो जवान शहीद हुए। पिछले महीने कई बड़ी घटनाएं हो गईं, जिनमें कटरा जा रही बस पर हमला कर आतंकियों ने नौ श्रद्धालुओं को मार डाला और कई घायल हो गए। इस वक्त अमरनाथ यात्रा चल रही है, इसलिए सुरक्षाबल अतिरिक्त रूप से चौकस हैं, मगर फिर भी कुछ इलाकों में दहशतगर्द उन्हें चुनौती देने में कामयाब हो जा रहे हैं, तो सरकार के दावों पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। सरकार लगातार दावे करती आ रही है कि घाटी में दहशतगर्दी की जड़ों पर प्रहार किया गया है। उनके वित्तपोषण पर नकेल कसी जा चुकी है, सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को काफी हद तक रोक दिया गया है। मगर हर आतंकी हमले के बाद सरकार के ये दावे खोखले साबित होते हैं।

पिछले पांच वर्षों से घाटी में जनतांत्रिक प्रक्रिया पूरी तरह स्थगित है। विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किए जाने के बाद दावा किया गया था कि घाटी से आतंकवाद का पूरी तरह सफाया हो जाएगा। मगर ऐसा हुआ नहीं, बल्कि खुद सरकारी आंकड़ों में देखा गया कि जिन दिनों कश्मीर में कर्फ्यू लगा था, उन दिनों भी स्थानीय युवा हाथ में बंदूक उठाने को तत्पर हुए। आतंकी संगठनों में भर्तियां बढ़ीं। उसके बाद से आतंकी संगठनों ने अपनी रणनीति लगातार बदली है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों और बाहरी लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सुरक्षाबलों के काफिले पर घात लगा कर हमले बढ़ गए। उन हमलों में यह भी देखा गया कि दहशतगर्द अब ज्यादा घातक हथियारों का इस्तेमाल करने लगे हैं, उनका सूचनातंत्र ज्यादा पुख्ता हुआ है। ऐसे में ये सवाल अपनी जगह कायम हैं कि अगर सचमुच घाटी में खुफियातंत्र चौकस हुआ है, आतंकियों के वित्तपोषण पर लगाम कसी है, सीमा पार से उन्हें मिलने वाली मदद पर विराम लगा है, तो आखिर उनके पास संसाधन पहुंच कहां से रहे हैं और किस तरह वे घात लगा कर हमला करने में कामयाब हो जा रहे हैं।

लोकसभा चुनावों के बाद अब वहां विधानसभा चुनाव की मांग तेज हो गई है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया था, उस पर भी सबकी नजर है। निर्वाचन आयोग ने कहा है कि जल्दी वहां चुनाव करा लिए जाएंगे। मगर आतंकवाद खत्म करने के जिस मकसद से इतने लंबे समय तक पूरे राज्य को एक तरह से संगीन के साए में रखा गया, उसकी जड़ों पर कहीं से भी प्रहार हुआ नजर नहीं आ रहा, तो यह कहना मुश्किल बना रहेगा कि इस समस्या से पार पाने का रास्ता आखिर क्या अपनाया जाएगा। पिछले दस वर्षों में केंद्र सरकार ने वहां के लोगों से संवाद कायम करने का कोई रास्ता नहीं निकाला है, इससे भी वहां के लोगों में गहरा असंतोष है। फिर, लोकतांत्रिक प्रक्रिया स्थगित कर बंदूक के बल पर वहां अमन का रास्ता तलाशने की कोशिश में आम नागरिकों को जिन ज्यादतियों और परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है, उससे उनकी नाराजगी बढ़ी ही है। जब तक वहां के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने के उपाय नहीं किए जाएंगे, वे आतंकी संगठनों का मोहरा बनते रहेंगे।