जम्मू-कश्मीर पिछले कई दशक से आतंकवाद से त्रस्त है। इसका असर स्थानीय आबादी के एक हिस्से पर भी पड़ा है। ऐसे आरोप भी सामने आए कि वहां आतंकवादी हमलों के खिलाफ अपेक्षित प्रतिरोध मुखर नहीं दिखता। मगर पहलगाम में आतंकवादियों ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए जिस तरह छब्बीस पर्यटकों को मार डाला, उसके बाद कश्मीरी जनता का गुस्सा उभरा है। खासकर अनंतनाग और उसके आसपास के इलाकों को आतंक का गढ़ माना जाता है, वहां रहने वालों के भीतर इस घटना के खिलाफ जैसा आक्रोश पैदा हुआ, वह किसी भी जिम्मेदार और संवेदनशील समाज में एक जरूरी प्रतिक्रिया होती है।

अब सड़क पर उतरी आम जनता

दरअसल, इस इलाके को एक समय प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कथित कमांडर बुरहान वानी और रियाज नायकू के गढ़ के रूप में जाना जाता था। मगर अब इस इलाके के निवासियों ने पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद अब सार्वजनिक रूप से ‘आतंकवाद बंद करो’ और ‘निर्दोष लोगों की हत्या बंद करो’ के नारे के साथ विरोध जताना शुरू कर दिया है। इसके अलावा, समूची कश्मीर घाटी में इस मसले पर स्थानीय आबादी के बीच स्वत: स्फूर्त विरोध उभरा और व्यापक पैमाने पर लोगों ने इस घटना की निंदा की, प्रदर्शन किया।

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करीब साढ़े तीन दशक के दौरान आतंकवाद के खिलाफ वहां के लोगों में शायद ही कभी इतने बड़े पैमाने पर गुस्सा उभरा था। जाहिर है, इसकी अनेक वजहें हैं, जिसमें पहलगाम में हुई बर्बरता का स्वरूप एक तात्कालिक कारण है। सच यह है कि कश्मीर में इस बड़े बदलाव के पीछे आतंकवादी संगठनों के हमलों की वह निरंतरता है, जिसकी मार कश्मीर के लोगों को झेलनी पड़ी है।

दरअसल, समूचा कश्मीर पर्यटन से जीवन पाता है और यह वहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। आतंकवाद की आग ने वहां के पर्यटन उद्योग पर कैसा असर डाला है, यह किसी से छिपा नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे सहजता आने की वजह से कश्मीर में पर्यटन फिर से जोर पकड़ रहा था और वहां के स्थानीय लोगों को शांति, लोकतंत्र और स्थिरता की अहमियत समझ में आ रही है। कश्मीरी अवाम की इस भावना को उम्मीद की एक किरण के तौर पर देखा जा सकता है।