उत्तर प्रदेश में विकास और सुशासन का नारा अब खोखला साबित हो रहा है। मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि उनके शासन में या तो अपराधियों की जगह जेल में होगी या फिर वे प्रदेश छोड़ कर भाग खड़े होंगे। मगर हो इसका उलट रहा है। अपराधी न सिर्फ बेखौफ घूमते नजर आते हैं, बल्कि सरेआम अपराध करने में भी उन्हें कोई भय नहीं होता। वे जमानत पर रिहा होकर जेल से बाहर निकलते हैं और मामला दर्ज कराने वालों को अपना निशाना बना लेते हैं। छेड़खानी, बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं। बलात्कार के आरोपी जैसे ही पुलिस के चंगुल से छूटते हैं, आरोप लगाने वाली लड़की और उसके परिजनों को खत्म करने की कोशिश करते हैं। पुलिस की आंखों के सामने हत्या करके अपराधी फरार हो जाते हैं और पुलिस कुछ नहीं कर पाती। गाजियाबाद में एक स्थानीय पत्रकार को गोली मारने की घटना इसी की ताजा कड़ी है। पत्रकार ने अपनी भानजी का उत्पीड़न करने वाले कुछ लोगों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आरोपी उसी से नाराज थे और उन्होंने पत्रकार को उसके घर के सामने सरेआम सिर में गोली मार दी। जाहिर है, अपराधी पुलिस से भयभीत नहीं हैं, बल्कि समाज में लोगों को भयभीत करके अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश में हत्या की घटनाएं आए दिन की बात हो गई हैं। एक दिन पहले ही बलात्कार के एक आरोपी ने जमानत से छूटने के बाद गांव लौट कर बलात्कृत लड़की और उसकी मां को दिन-दहाड़े ट्रैक्टर के नीचे कुचल कर मार दिया। अगर उसे पुलिस का भय होता, तो ऐसा करने की हिम्मत नहीं करता। यों मुख्यमंत्री बार-बार रेखांकित करते रहे हैं कि उनसे पहले की सरकारों के समय में अपराधी निरंकुश घूमते रहे हैं और उन्हें सत्तापक्ष का संरक्षण मिलता रहा है। पर अब खुद उनकी सरकार पर भी यही आरोप लगने शुरू हो गए हैं। छिपी बात नहीं है कि अपराधी तभी निरंकुश होते हैं, जब पुलिस प्रशासन उन्हें अपने शिकंजे से दूर रखती है। और यह भी कि पुलिस तभी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में शिथिल नजर आती या फिर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती है, जब सत्तापक्ष उसे ऐसा करने देता है। अगर उत्तर प्रदेश सरकार सचमुच अपराध मिटाने को प्रतिबद्ध होती, तो कोई कारण नहीं हो सकता कि अपराधी इस तरह निर्भय होकर अपराध करते। मगर विकास दुबे कांड के बाद एक बार फिर परतें खुलने लगी हैं कि किस तरह पुलिस, अपराधी और सत्तापक्ष का गठजोड़ प्रदेश में काम करता आ रहा है।
हकीकत यह भी है कि राजनीतिक दल और सरकारें अपराध मिटाने का दम चाहे जितना भरें, वे खुद अपराधियों से दूरी बना कर नहीं रख पातीं। यह अकारण नहीं है कि राजनीति में अपराधीकरण निरंतर बढ़ रहा है। इसे लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है, पर राजनीतिक दल इसे लेकर अन्यमनस्क ही देखे जाते रहे हैं। जाहिर है इससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता और राजनीति में प्रवेश का आसान रास्ता नजर आता है। फिर पुलिस भी सत्तापक्ष का कृपापात्र बन कर हर तरह के लाभ उठाने का प्रयास करती देखी जाती है। ऐसे में उसे सत्तापक्ष के करीबी अपराधियों के प्रति आंखें बंद करके रखना ही पड़ता है। इस तरह बड़े अपराधियों की छत्रछाया में छोटे अपराधियों का जमघट लगता रहता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदेश को अपराध मुक्त करने का दावा चाहे जितना करें, पर असल में उनके सुशासन के दावे की पोल खुल चुकी है।