कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी से अरविंद केजरीवाल सरकार को नई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। भले इस घटना के पीछे वह केंद्र सरकार की मंशा पर अंगुली उठा रही है, पर हकीकत यह है कि अगर इस मामले में समय रहते मुख्यमंत्री ने खुद पारदर्शिता बरती होती तो शायद यह स्थिति न आने पाती।
तोमर की डिग्रियों को लेकर सबसे पहले पार्टी के भीतर ही सवाल उठे थे, पर उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। उस वक्त पार्टी के वरिष्ठ सदस्य प्रशांत भूषण ने कहा था कि अगर तोमर की डिग्रियां सही हैं, तो उन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इस मसले को गंभीरता से लिया गया होता तो तोमर को विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार ही नहीं बनाया जाता। जब बार काउंसिल ने तोमर की स्नातक और कानून की डिग्रियों पर कानूनी कदम उठाया और उच्च न्यायालय ने मामले की छानबीन का आदेश दिया तब भी अरविंद केजरीवाल तोमर के पक्ष को सही मानते रहे। ऐसे में आम आदमी पार्टी के प्रशासन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ाई से पेश आने के वादे पर स्वाभाविक रूप से सवाल उठ रहे हैं।
पार्टी के संविधान के मुताबिक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने का नियम है। मगर जब पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों ने कुछ उम्मीदवारों की योग्यता पर सवाल खड़े किए और पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक व्यवस्था के अवरुद्ध होते जाने पर आपत्ति दर्ज की तो न सिर्फ उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, बल्कि आंतरिक लोकपाल को भी हटा दिया गया। तब से कोई लोकपाल नियुक्त नहीं किया गया है। इस तरह पार्टी के भीतर की शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं। सरकार बनने के बाद कई ऐसे मौके आए जब अरविंद केजरीवाल को पार्टी में अनुशासन और सरकार के कामकाज में सुधार लाने की जरूरत रेखांकित हुई, पर वे उन्हें नजरअंदाज करते आ रहे हैं।
हालांकि तोमर की गिरफ्तारी में दिल्ली पुलिस का रवैया भी उचित नहीं कहा जा सकता। उसने गिरफ्तारी का जो समय और तरीका चुना उससे स्पष्ट है कि उसका इरादा महज अपराध के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं था। छापामार तरीके से तोमर को गाड़ी में बिठाया और थाने ले गई, फिर व्यूह रचना की तरह उन्हें अदालत में पेश किया और हिरासत में ले लिया। जबकि यह ऐसा मामला नहीं था, जिसके लिए उसे किसी खूंखार अपराधी को पकड़ने जैसी तैयारी करने और रणनीति बनाने की जरूरत हो।
चूंकि तोमर की फर्जी डिग्री का मामला उजागर करने वाला व्यक्ति भाजपा से संबद्ध है और इसे लेकर जिस तरह त्वरित जांच और कार्रवाई की गई, नियम-कायदों का भी ध्यान नहीं रखा गया, उससे इस पूरे प्रकरण में केंद्र सरकार की दिलचस्पी से इनकार नहीं किया जा सकता। भले गृहमंत्री का तर्क है कि मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस को ऐसी कोई कार्रवाई करने का आदेश नहीं दिया, पर क्या तोमर की गिरफ्तारी में पुलिस के रवैए को वे उचित मानते हैं? फिर जब इस घटना पर पुलिस की कार्यशैली को लेकर चौतरफा सवाल उठ रहे हैं, गृहमंत्रालय ने स्पष्टीकरण मांगने की जरूरत क्यों नहीं समझी। फर्जी कागजात दाखिल करने और भ्रष्टाचार के मामले में केंद्र और राज्यों की सरकारों में अनेक प्रतिनिधियों पर गंभीर आरोप हैं।
खुद केंद्र के कई मंत्री दागी हैं। उनके खिलाफ ऐसी त्वरित कार्रवाई पुलिस क्यों नहीं करती। बलात्कार के आरोपी केंद्रीय मंत्री निहालचंद को तो पुलिस समन तक नहीं पहुंचा पाई थी। लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियां सभी दलों में उड़ाई जा रही हैं। अगर भाजपा को सचमुच शुचिता, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन में यकीन है, तो उसे केवल आम आदमी पार्टी की कमजोरियों पर अंगुली उठा कर इतराने के बजाय अपने दामन में भी झांकने की जरूरत है।
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