बिहार में विकास और सुशासन के वादे के साथ दूसरी बार नीतीश कुमार सत्ता में आए। उनके साथ लालू यादव ने भी भरोसा दिलाया कि अब बिहार में भ्रष्टाचारियों और बाहुबलियों के लिए कोई जगह नहीं रहेगी। मगर हकीकत यह है कि राष्ट्रीय जनता दल हो या फिर जनता दल यूनाइटेड, दोनों के नेताओं और उनके परिजनों, करीबियों ने खुल कर अपने बाहुबल का प्रदर्शन शुरू कर दिया। गया में एक विधानपरिषद सदस्य के बेटे का एक व्यापारी के बेटे की गोली मार कर हत्या कर देना इसी की एक कड़ी है।
मामला सिर्फ इतना था कि विधान परिषद सदस्य के बेटे की गाड़ी को व्यवसायी के बेटे और उसके दोस्तों ने ओवरटेक कर दिया, यानी उससे आगे निकल गए। विधायक के बेटे की गाड़ी में विधायक का सुरक्षा गार्ड भी था। उन लोगों ने व्यवसायी के बेटे की गाड़ी रुकवाई, उसमें बैठे लड़कों से तकरार हुई और विधायक के बेटे ने अपनी रिवाल्वर से उसके सिर में गोली मार दी। यह सत्ता का मद नहीं तो और क्या था कि एक विधायक के बेटे को किसी का अपनी गाड़ी से आगे निकल जाना भी मंजूर नहीं। विधायक को मिली सुविधाओं और उसके अधिकारों का बेजा इस्तेमाल किस तरह उसके परिजन और करीबी करते हैं, यह उसकी भी एक मिसाल है। आरोपी के पिता बिहार के बाहुबली हैं, इसलिए नीतीश कुमार ने उन्हें चुनाव का टिकट न देकर खुद को साफ-सुथरा साबित करने की कोशिश की, मगर उसकी भरपाई उनकी पत्नी को विधान परिषद का सदस्य बनवा किया। आरोपी के पिता की ताकत और सत्ता से करीबी का ही नतीजा है कि हत्या के एक दिन बाद भी न तो पुलिस ने मामले की एफआइआर लिखी और न फरार आरोपी को पकड़ पाई।
बिहार में पिछली नीतीश सरकार के समय लोगों में भरोसा बना था कि जल्दी ही राज्य को बाहुबल और भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी। इसी उम्मीद के साथ राज्य से बाहर गए लोग वापस लौटने लगे थे। कारोबार को गति मिलने लगी थी। व्यवसायियों में भरोसा बना कि अब वे सुरक्षित रह सकेंगे। लालू-राबड़ी शासन के दौरान जिस तरह अपहरण, फिरौती, रंगदारी, हत्या और भ्रष्ट्राचार अपने चरम पर पहुंच गया था, उससे मुक्ति का एक सपना जगा था लोगों में। मगर इस बार सरकार के शुरुआती दिनों में ही वह सपना धुंधलाने लगा है। दअसल, आपराधिक घटनाओं पर रोक न लग पाने के पीछे बड़ा कारण है कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार खुद को बाहुबलियों से दूर नहीं रख पाए हैं।
राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को लेकर इतनी बार बहसें हो चुकी हैं, पर ये दोनों नेता जैसे इसी को अपनी ताकत समझते हैं। हालांकि सार्वजनिक मंचों से ये दोनों गरीबों-दलितों की रहनुमाई का दम भरते हैं, सुशासन के दावे करते हैं, पर शायद इस बात को जानबूझ कर नजरअंदाज कर देते हैं कि जब तक बाहुबलियों का मनोबल कमजोर नहीं होगा, न तो सुशासन होगा और न विकास। बिहार में कारोबार की तमाम संभावनाओं के बावजूद उद्यमी इसलिए निवेश को आगे नहीं आते कि वहां भ्रष्टाचार और बहुबलियों का साम्राज्य है। ताजा घटना के बाद सरकार भले कह रही है कि दोषी को सजा जरूर मिलेगी, पर प्रशासन के कामकाज के तरीके से इसका भरोसा नहीं बन पा रहा। अगर सरकार इसी तरह अपराधियों को संरक्षण देती रही, तो उसके वादे और इरादे शायद ही कभी पूरे हो पाएं।